ध्वस्तोद्दण्डविपक्षमंडलमथ त्वां वीक्ष्य मध्येरणम्॥
वल्गद्गाण्डिवमुक्तकाण्डवलय ज्वालावली-
ताण्डवभ्रश्यत्खाण्डवरुष्टपाण्डवमहो को नक्षितीशः स्मरेत्॥१२८॥
(हे राजन्!) भुजद्वय से चक्राकार कियेगए शोभायमान धन्वा से (निकले हुए) तीव्र बाणौं (के प्रहार) से परम पराक्रमी शत्रुमंडल के विध्वंश करनेवाले आपको, समर भूमि में अवलोकन कर, कौन भूपाल (ऐसा है जो), घोर शब्द करनेवाले गांडीव नामक धनुष से छूटे हुए शर समूहों की ज्वाला के नृत्य से नष्ट होंने वाले खाण्डव वनसें रुष्ट पांडव [अर्जुन] का स्मरण न करे? (युद्धविद्या प्रवीण राजाका स्तवन है। इसमें 'स्मृति' अर्थात् 'स्मरण' अलंकार है)
खण्डितानेत्रकाञ्जालिमञ्जुरञ्जनपण्डिताः॥
मण्डिताखिलदिक्प्रांताश्चण्डांशोः पान्तु भानवः॥१२९॥
इति श्रीमत्पण्डितराजजगन्नाथकविविरचिते
भामिनीविलासे प्रास्ताविको नाम प्रथमो विलासः॥१॥
खंडिता[१] नायिका की नेत्ररूपी कमल पंक्तियों को सुख देने में कुशल (और) सर्व दिग्भागों को शोमायमान करनेवाली सूर्य की किरणौं (आपकी) रक्षा करें! (यह श्लोक आशीर्वादात्मक है। प्रातःकालपर्यंत निद्रित किसी राजा
- ↑ खंडिता उस नायिका को कहते है जिसका पति सर्व रात्र दूसरी स्त्रीके साथ व्यतीत कर प्रातःकल अपने गृह आताहै।