में नयनों को स्थापन[१] करनेवाली रामा (भामिनी स्त्री) उस समय मुझे आता देख हास्यमुखी हुई।
वक्षोजाग्रं पाणिनामृष्य दूरं यातस्य द्रागाननाब्जं प्रियस्य।
शोणाग्राभ्यां भामिनीलोचनाभ्यां जोषं जोषं जोषमेवावतस्थे[२]॥१७॥
कुचाग्रभाग को हस्त से मर्दन करके तुरंत दूर चले गए प्रियतमके मुखकमलका, (अपने अरुण नेत्रोंसे सेवन करती हुई) रोषपूरित (भामिनी चुपचाप स्थित रही अर्थात् नेत्र लाल करके उसके मुख की ओर देखती रह गई, कुछ कर न सकी)
गुरुभिः परिवेष्टितांपि गंडस्थलकंडूयनचारुकैतवेन।
दरदर्शितहेमबाहुनाला मयि बाला नयनांचल चकार[३]॥१८॥
गुरूजनों के बीच में बैठीहुई बाला (भामिनी) ने गंडस्थल (कपोल भाग) खुजलनो के मिस से हेमसदृश भुजारूपी नाल का किंचित दरशन देकर मुझे अवलोकन किया (अधिक स्नेह के कारण गुरूजनों के मध्य से भी किसी मिससे प्रियतम को देखा यह भाव)
गुरुमध्यगता मया नतांगी निहता नीरजकोर-