सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[९३]


से आये थे। यह सब एक ही क़बीले (कुल) के न थे। इन के पांच वंशों ने बादशाहो की; (१) गुलाम (दास) (२) खिलजी (३) तुग़लक (४) सैयद (५) लोधी।

२—मुसलमानों ने एक एक करके हिन्दुओं के सब राज छीन लिये। पठानों के समय में मदा कहीं न कहीं लड़ाई होती रही। हिन्दू भी कट कट कर लड़ते थे और मुसलमानों को सहज में राज न देते। इन में कई राज ऐसे भी हैं जो कभी जीते न गये। तुर्कों तातारियों अफ़गानियों के झुंड के झुंड चले आते थे और देश दबाते जाते थे। यह नये आये विलायती कहीं हिन्दुओं से भिड़ जाते और कहीं उन भाइयों से लड़ते थे जो पहिले आकर हिन्दुस्थान में बसे थे।

३—जिस के पास रुपया पैसा गहना होता था वह उसे गड़हा खोद कर गाड़ देता था। यह डर लगा रहता था कि कदाचित् कोई बैरी आये और छीन कर ले जाय। हम लोग जो आज कल सुख चैन से दिन व्यतीत कर रहे हैं अनुमान भी नहीं कर सकते कि पठानों के समय में भारत पर कैसी कैसी आपत्तियां आई थीं। हिन्दुओं के पुराने पुराने मन्दिर बहुधा तोड़ दिये गये थे। बहुतसी उपजाऊ भूमि बे खेती बारी के पड़ी थी। इसका कारण यह था कि बेचारे निर्धनी किसान अपने प्राणों के भय से बनों में भाग गये थे। बहुत से हिन्दू मुसलमान हो गये। इनमें से कुछ तो इस आशा पर मुसलमान हुए थे कि बिजयी जाति की सेना और उनके दफ़तरों में उच्च पद को प्राप्त हों और बहुतेरे प्राणों के भय से। इसी कारण पठानों के समय में बहुत से सुप्रसिद्ध सरदार ऐसे थे जो वास्तव में हिन्दू थे पीछे मुसलमान हो गये थे।

४—जिस भांति प्राचीन काल में आर्य लोग पंजाब से यमुना