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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१२

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पहिली से बहुत नीची है। दखिन की प्रायः सब नदियां पश्चिमीय घाट से निकलती हैं और पूर्व की ओर बहती हुई पूर्वीय घाटों को चीरती समुद्र में गिरती हैं। दोनों घाटों और समुद्र के बीच में कुछ कुछ तरी है। पूर्वीय घाट की तरी सिकुड़ कर उत्तर में बहुत छोटी रह गई है, परन्तु दक्षिण में इसकी चौड़ाई बहुत है और यहां इसे कारनाटिक का मैदान कहते हैं। उत्तर से दक्षिण जाने का रास्ता इन्हीं तरेटियों में होकर है।


२—प्राचीन समय में भारतवर्ष की दशा।
(१) पत्थर और धात का समय।

१—हज़ारों बरस पहिले भारतवर्ष जङ्गली देश था। सारे देश में बड़े बड़े बन खड़े थे जिनमें जङ्गली जीवजन्तु फिरा करते थे। पेड़ों की घनी छांह में अजगर लोटते थे न कहीं शहर थे, न गांव, न घर, न सड़कें।

२—कहीं कहीं थोड़े से बनमानुस रीछों की तरह खोहों में या बन्दरों की तरह पेड़ों पर रहा करते थे। इनका डील छोटा, रंग काला, चेहरा मोहरा भोंडा था; नंगे और मैले रहते और बन के फल फूल बेर और कन्दमूल खाते थे; कभी कभी बनैले सुअर और हिरन भी मारकर खा जाते थे। इनके पास चाकू छुरे न थे। काटने का काम चकमक पत्थर के पैने टुकड़ों से लिया करते थे। इससे हम इन लोगों को पत्थर के समय के आदमी कहते हैं। यह लोग लकड़ियों को रगड़ कर आग बनाना भी जानते थे।

३—इन लोगों की यह दशा बहुत दिनों तक रही। पीछे धीरे धीरे इन्हों ने कुछ उन्नति की और बनों में रहने के लिये छोटी छोटी झोपड़ियां बनाई; पत्तों या पशुओं की खाल से अपना तन