सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[११२]


काट मचा दी। अब इसको पांच सौ बरस से अधिक हो चुके हैं परन्तु न इससे पहिले कभी ऐसी मार धाड़ हुई और न इससे पीछे। दिल्ली का पठान बादशाह आप मुसलमान था; इस कारण यह भी नहीं कहा जा सकता कि उसने इतनी मार काट मुसलमान दीन के बढ़ाने के लिये की थी। इसकी तो अभिलाषा यह थी कि हिन्दुस्थान को धड़ाधड़ लूटे मारे और यही इसने कर दिखाया।

३—तैमूर अपने तातारी टीड़ीदल को साथ लेकर अफ़ग़ानिस्तान से होता हुआ पंजाब में आया और कूच पर कूच करता हुआ धीरे धीरे दिल्ली पहुंचा; राह में जो स्थान पड़े सब को सफ़ाचट करके छोड़ गया। जहां जहां आबादी थी वहां लाशों के और आग की प्रचण्ड ज्वाला के सिवा और कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। जब दिल्ली के पास पहुंचा तब उसके साथ एक लाख कैदियों की भीड़भाड़ थी। उसने देखा कि कौन इनका बोझ सम्हाले और देख भाल करे, इस कारण १५ बरस से अधिक आयुवाले कैदियों को मरवा डाला।

४—यह समाचार दिल्ली में जसे पहुंचा कि सब के उसी समय भय के मारे मुंह पीले हो गये। बादशाह छिपकर शहर के चार दिवारी के अन्दर जा बैठा; पर थोड़े दिनों के पीछे जब मन में तरङ्ग उठी तो सेना लेकर नगर के बाहर निकल आया।

५—तैमूर अवसर पाकर तुरन्त बादशाह पर चढ़ आया। महमूद तुग़लक़ की हार हुई। पांच दिन बराबर तातारी शहर में घूमे; कहीं आदमियों को मारते थे; कहीं आग लगाते थे। निदान जब थक गये और लूट खसोट भी चुके तो बहुत से कैदी और लूट का धन लेकर हिमालय के नीचे पंजाब में पहुंचे और वहां से काबुल होते हुए तुर्किस्तान को लौट गये।