पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१२४

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देश भी उसके हाथ से निकल गये। अफ़गानों के बहुत से बड़े बड़े अमीर दिल्ली के शाह को अपना शिरोमणि समझने लगे थे।

इब्राहिम लोधी।

यह छोटी छोटी रियासतों के अधिकारी थे और सम्राट उनका मान करता था और इन्हीं उमराओं और ऊंचे पदवालों की सहायता पर राज थमा था। इब्राहीम ने यह रीति भी बदल दी। जब यह राजसभा में आते तो उनको नौकरों की तरह हाथ जोड़े खड़ा रखता। उनको अधिकार न था कि बिना बुलाये बादशाह के सामने जीभ तक डुला सकें। अफ़गानी लोग जो अपने मान और रखरखाव पर बड़ा ध्यान रखते थे इस चाल से बहुत बिगड़ गये। बहुतेरे जिनसे अपनी मानहानि न सही गई मरवा डाले गये और बहुत से बिद्रोही हो गये, जैसे चित्तौड़ का राजा संग्राम सिंह और पंजाब का सूबेदार दौलत खां। इन्हों ने काबुल के मुग़ल बादशाह को सन्देश भेजा कि आप आयं और इब्राहीम से राज छीन लें। उसने प्रसन्नता पूर्वक इस बात को स्वीकार किया। इब्राहीम की हार हुई और हिन्दुस्थान मुग़ल बादशाहों के हाथ आ गया।

४—इस समय उत्तरीय और मध्य भारत में मुसलमानों की कुछ रियासतें थीं। इन सब के अफ़गान मालिक किसी समय दिल्ली के बादशाह के सूबेदार थे। पञ्जाब, बङ्गाला, जौनपूर, गुजरात, मालवा, मुलतान, सिन्ध सब पठानों की रियासतें थीं। अरवली पर्वत के दक्षिण की ओर राजपूताने में कई राजा राज करते थे। उनमें सब से शक्तिमान उदयपूर या चित्तौड़ का राजा था।