५—दखिन में दो बड़े राज थे, मध्य में पठानों का वह बड़ा राज्य जिसे बहमनी कहते थे और दक्षिण में हिन्दुओं का विजयनगर का राज्य जिसमें दखिन का सारा भाग मिला हुआ था। अगले अध्याय में यह सब बातें कही जायंगी कि पठान दखिन में कब और किस भांति फैले; बहमनी और बिजयनगर के राज कब और किस भांति बने; और इनके पीछे दक्षिण में मुसलमानों ने कैसे छोटे छोटे राज स्थापन किये।
(सन् १२९४ ई॰ से सन् १३१२ ई॰ तक)
१—पहिले पहिल ख़िलजियों के समय में दखिन पर मुसलमानों के आक्रमण हुए। उस समय पूर्व का तिलगू देश जहां प्राचीन काल में अंध्र का राज था तिलंगाने के नाम से प्रसिद्ध था और वारंगल उसकी राजधानी थी। पश्चिमीय भाग जहां मरहठी भाषा बोली जाती है महाराष्ट्र कहलाता था और देवगिरि उसकी राजधानी थी। दक्षिणीय देश जहां कनाड़ी भाषा बोली जाती है कारनाटक कहलाता था। यहां राजपूतों के प्रसिद्ध वंश बल्लाल ने तीन सौ बरस अर्थात १००० ई॰ से १३०० ई॰ तक राज किया और द्वारसमुद्र जो मैसूर में है उसकी राजधानी था। राजपूत का एक और वंश चालुक्य कई सौ बरस पहिले हैदराबाद के दक्षिण पश्चिमीय भाग में जहां कनाड़ी मरहठी दोनों भाषायें बोली जाती हैं राज करता था। उसकी राजधानी कल्याण था जो हैदराबाद से सौ मील पश्चिम की ओर है। उड़ैसे में छ: सौ बरस से केसरी वंश के राजपूत राज करते थे; उनकी राजधानी कटक थी। दक्षिण भारत में और भी कई हिन्दू राज्य थे।