सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[१३३]


कि राना सांगा की हार हुई और वह खेत से भाग खड़ा हुआ और थोड़े ही दिन पीछे मर गया> हसनख़ां भी मारा गया। बाबर की जीत की यादगारी में सिकरी को फतेहपुर सिकरी का नाम मिलगया। इसके पीछे राजपूतों ने दिल्ली लेने और भारत पर राज करने का उद्योग न किया। अब यह लोग राजपूताने में रहे और इसी को बाबर की चढ़ाइयों से बचाने में लगे रहे।

१०—दूसरे बरस बाबर ने चंदेरी पर चढ़ाई की। यह मालवे की सरहद पर राजपूतों का एक गढ़ था। राजपूत बीरता से लड़े पर गढ़ टूट गया। राजपूतों का यह नियम है कि न खुशी से आधीनता स्वीकार करते हैं न बैरी से दया और क्षमा मांगते हैं। पहिले उन्हों ने अपनी स्त्रियों का बध किया फिर नंगी तलवारें हाथ में लेकर गढ़ से बाहर निकले और मर्दों की तरह लड़ लड़ कर बैरी के हाथों से कट कट कर मर गये।

११—बाबर का असली नाम ज़हीरुद्दीन था। तुर्किस्तान के सर्दारों ने इसकी प्रशंसा में इसको बाबर की पदवी दी थी और अब वह इसी नाम से प्रसिद्ध है। बाबर उस भाषा में सिंह को कहते हैं और यह नाम इस बहादुर बादशाह को फबता है। यह इतना बलवान था कि दोनों कांख में पूरे डील के एक एक जवान को दबा कर कोट पर दौड़ सकता था; तैरने वाला ऐसा था कि जो नदी उसके सामने पड़ती थी उसको तर ही के पार करता था; सवार ऐसा था कि दिन दिन भर में सौ सौ मील के धावे मारता था।

१२—बाबर योद्धा तो था पर निर्दयी नहीं था। उसने कभी किसी ऐसे मनुष्य को नहीं मारा जो लड़ने के योग्य न हो अथवा लड़ाई से भागता हो। भारतवर्ष में आने से उसकी कभी यह इच्छा नहीं थी कि वह हिन्दुओं को मारे या उनके मन्दिर