मुखिया था। इनके सिवाय बहुत से सरदार, सेनापति और सामंत थे जो लोधियों या पठानों की बादशाही फिर से स्थापन करना चाहते थे। यह सरदार और सामंत यह समझते थे कि जो बाबर भारत में रहगया तो हमारी रियासतें छिन जायंगी और हमारा कोई पुछन्तर न रहेगा। उन्हों ने हिन्दुओं से भी यही कहा कि तैमूर की तरह बाबर भी तुम्हें बेदरदी से मारेगा और जो कुछ तुम्हारे पास है सब नोच खसोट लेगा। परिणाम यह हुआ कि सब के सब मिल कर एक बड़ी सेना लेकर बाबर का सामना करने आये। आगरे से २० मील पर सीकरी के मैदान में बड़ी भारी लड़ाई हुई। बाबर को मदिरा बहुत प्यारी थी पर इस लड़ाई से पहिले उसने यह मन्नत की कि हे अल्लाह इस अवसर पर मुझे जितादे तो मैं कभी शराब न पिऊंगा। सोने चांदी के जितने बरतन डेरे में थे सब तोड़ कर गरीबों को बांट दिये गये। जितनी मदिरा थो सब लुंढा दी गई। जो ताज़ी शराब ग़जनी से बादशाह के पीने के लिये आई थी उसमें नमक पीसकर मिला दिया जिसमें वह पीने के काम की न रहै। बाबर ने जो देखा कि उसके कुछ साथी ढीले देख पड़ते हैं तो उसने सब को इकट्ठा करके यह व्याख्यान दिया, "जो पैदा हुआ है वह एक दिन ज़रूर मरेगा। केवल ईश्वर मौत से बचा है। फिर जब दो दिन आगे या दो दिन पीछे मरना सिद्ध है और हमारे मरने का दिन आगया है तो ऐसे अवसर पर अपने दीन (धर्म) और अपनी जाति के लिये मर्दो की तरह प्राण समर्पण करके क्यों न मरे। नेकनामी से मरना मुंहकाला करके जीने से अच्छा है। तुम मेरे साथ कुरान उठाओ और क़सम खाओ कि बैरी को पीठ न दिखायेंगे। जो हम बीरता से लड़ैंगे तो ईश्वर हमारा सहायक होगा और हम ज़रूर जीतैंगे"। बाबर के साथियों ने कुरान की क़सम खाई कि बैरी को जीतैंगे या लड़ मरंगे। परिणाम यह हुआ
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