आकर हुमायूं से लड़ना नहीं चाहता था। हुमायूं अपने भाई कामरां और हन्दाल को चिट्ठी पर चिट्ठी भेजता था कि सेना भेजो। दो महीने हुमायूं और उसकी थकी थकाई सेना इसी आसरे में बैठी रही पर कोई सहायता को न आया। उसके कपटी भाइयों ने अपना एक आदमी भी बङ्गाले को न आने दिया और वह चाल चले जिस से हुमायूं हारै और नष्ट हो जाय।
११—हुमायूं ने देखा कि आगे जाना असम्भव है और यहीं पड़े रहे तो एक आदमी भी जीता न बचेगा। यह बिचार कर उसने शेरखां के पास संधि का सन्देश भेजा। शेरखां ने उत्तर दिया कि मुझे बङ्गाले और बिहार के देश देदिये जायं और मुझको वहां का बादशाह बना दिया जाय तो मैं शाह दिल्ली को अपना स्वामी मानूंगा और उसे कर देता रहूंगा। हुमायूं ने यह बात मान ली और संधि कर ली। इसके सिपाहियों ने अपने कवच उतारे और चलने की तय्यारियां करने लगे। गङ्गा जी पर पुल बांधना आरम्भ किया कि उसपर से उतर कर दूसरे दिन घर की ओर चलैंगे।
१२—शेरखां ने जो देखा कि अब हुमायूं के सिपाही निश्चिन्त हो कर बैठे हैं तो यह सोच कर प्रसन्न होगया कि अब वह अवसर आगया है जिसको कि वह बहुत दिनों से ढूंढ़ता था। हुमायूं के थके मांदे सिपाही इस ध्यान में थे कि कल घर की ओर कूच करैंगे और रात होते ही लम्बी तान कर सो गये पर आधीरात को दो बजे अफ़गान इन पर टूट पड़े और बेचारों को काट डाला। हुमायूं घबरा कर नींद से उठा और घोड़े पर सवार होकर भागा और लड़ता भिड़ता नदी के किनारे जा पहुंचा। यह बहुत घायल हो रहा था और निर्बलता के कारण गिर पड़ता डूब जाता पर उस समय एक भिश्ती अपनी मशक फुलाकर नदी के पार जाना चाहता