सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[१४३]


था उसने मशक बादशाह को दे दी कि उसकी सहायता से नदी के पार पहुंच जाय। हुमायूं ने इसके बदले में उस भिश्ती को जिसका नाम निज़ाम मुहम्मद था यह आज्ञा दी कि तुम तीन घण्टे शाही सिंहासन पर बैठ कर हुकूमत करो और अपने नाम से आज्ञापत्र जारी करो। भिश्ती ने इस अवसर पर अपने हित मित्रों को बहुत कुछ सम्पत्ति भेंट की और अपनी मशक के छोटे छोटे टुकड़े काट कर और उनपर अपनी शाही मुहर लगा कर चमड़े का सिक्का जारी किया।

१३—हुमायूं कुछ विश्वासी साथियों को संग लेकर आगरे की ओर भागा। शेरखां ने बङ्गाले और बिहार को अपने आधीन किया; मुग़ल सेना को जो बङ्गाले में नियत थी निकाल बाहर किया और जब देखा कि यहां शान्ति हो गई तो हुमायूं का पीछा करता हुआ आगरे पहुंचा।

१४—इधर हन्दाल बादशाह बनकर दिल्ली में शासन कर रहा था। वह समझा कि मेरी करतूत ने हुमायूं और मुझे दोनों को नष्ट कर दिया पर अब क्या हो सकता था? हन्दाल थोड़ी सी सेना लेकर हुमायूं के निकट क्षमा मांगने गया। कामरां भी पञ्जाब से आ गया और उसने भी दया की प्रार्थना की। हुमायूं ने सच्चे जी से दोनों को क्षमा कर दिया और कहा कि जो कुछ होना था हो चुका अब हमको चाहिये कि बहादुरों की तरह एक दूसरे की सहायता करें और शत्रु को देश से निकाल दें। कामरां दो महीने आगरे में रहा फिर लाहौर लौट गया; जो सेना हुमायूं की सहायता को लाया था उसको भी संग लेता गया और हुमायूं के भी कुछ सर्दारों और सेनापतियों को यह जताकर कि यहां ठहरना जान जोखिम है और पञ्जाब में अच्छे अच्छे पद देने का लालच देकर साथ ले गया।