बटवाया करता था, इस बिचार से कि ऐसा न हो किसी की तनख़ाह मारी जाय; बङ्गाले से पञ्जाब तक और आगरे से मालवे तक सड़क के किनारे बराबर सरायें बनवा दी थीं जहां यात्रियों को बिना दाम भोजन मिलता था; चिट्ठियों के पहुंचाने के लिये सड़कों पर घोड़ों की डाक बिठा दी थी। सड़कों पर दोनों ओर मेवेदार पेड़ लगवा दिये थे और थोड़ी थोड़ी दूर पर यात्रियों की सुगमता के लिये कुएं बनवा दिये थे।
८—शेरशाह ने मालवा और मारवाड़ देश जीत लिये, मारवाड़ में रायसेन के राजपूतों को बहुत सताया। यहां के राजा पूरनमल से वादा करलिया था कि जो तुम मेरी आधीनता स्वीकार करो तो क़िले से अपना माल अस्बाब, बाल बच्चे और नौकर चाकर लेकर निकल जाओ मैं किसी को न रोकूंगा न किसी तरह का कष्ट दूंगा। राजपूत इस भरोसे पर क़िले से निकल आये कि बच जायंगे पर शेरशाह ने उन्हें मारडाला। यह कहा करता था कि शत्रु के साथ अपने बचन के पूरा करने की क्या आवश्यकता है? इस घटना के दूसरे बरस शेरशाह बुन्देलखंड में कालींजर के क़िले का घेरा कर रहा था कि मारा गया।
सुलतान असलम शाह या सलीम शाह।
९—शेरशाह के मरने पर उसका बड़ा बेटा तो कहीं दूर था इस कारण उसके छोटे बेटे ने तख़्त पर अधिकार जमा लिया। पहिले पहल तो यह कहता था कि मैं अपने भाई के आने तक बादशाह हूं पर भाई इस से डरता था। वह एक रियासत लेकर तख़्त और ताज का ध्यान छोड़ बैठा। सलीम ने उसको मारना चाहा पर वह बिहार की ओर भागा और फिर न जाने उसपर क्या बीती और वह कहां गया। बहुत से अफ़गान