लोगों ने पहिले पहिल गांवों के प्रबन्ध और बन्दोबस्त के नियम बनाये। उनमें बहुत से अब तक जारी हैं। यह लोग बड़े व्यापारी थे। भारतवर्ष में आर्यों के आने से पहिले ही यह लोग जलमार्ग से दूसरे देशों में सागवान की लकड़ी, मलमल, मोर, चन्दन की लकड़ी और चावल भेजते थे; बढ़ई, लोहार और जुलाहे का काम अच्छी तरह जानते थे। उस समय के विचार से इनको सभ्य कहना अनुचित नहीं है।
५—द्रविड़ कोलों के पास पड़ोस में रहते पर उनसे बहुत बली, गिनती में अधिक, और सभ्यता में बहुत बढ़े थे। जो धरती अधिक उपजाऊ थी वह द्रविड़ों ने आप ले ली जो बची वह कोलों के लिये छोड़ दी। कहीं कहीं द्रविड़ और कोल दोनों मिलजुलकर एक भी हो गये। जब बाहर से और जातियां एक के पीछे दूसरी लगातार भारतवर्ष में आने लगीं तब पहिले तो द्रविड़ और कोल उनसे लड़े पीछे उन में मिल गये। भारत के उत्तर के देशों से आनेवालों का ऐसा तांता लगा कि कुछ दिन पीछे हिन्दुस्थान के पश्चिम के भागों में जिन्हें अब पंजाब, कशमीर और राजपुताना कहते हैं कोल और द्रविड़ों का नाम तक न रह गया। परन्तु उत्तर भारत के मध्य भाग, गङ्गा की तरेटी, और सारे मध्य देश में इनकी संख्या अधिक थी यह बातें उन प्रान्तों के रहनेवालों के रंग, सिर की बनावट, आंख, नाक ओर डीलडौल से सिद्ध होती हैं। इन के देखने से यह सिद्ध होता है कि इन प्रान्तों के रहनेवालों की किसी किसी जाति में थोड़ा बहुत द्रविड़ और कोल अंश मिला हुआ है।
६—दक्षिण भारत के रहनेवालों की बनावट में जो द्रविड़ हैं बहुत कम भेद पड़ा है। वह अब तक द्रविड़ कहलाते हैं। हज़ारों बरस तक गरम देश में रहने से उनका रंग बहुत