और राज करने की योग्यता जन्मही से थी। चलते चलते जब अकबर ने देखा कि अब खानज़मा दूर नहीं है तो सारी सेना पीछे छोड़ दी और एक हज़ार सवार लेकर आधी रात के समय गंगा के पार होगया और रातों रात तीस मील का कूच कर सबेरे बैरी पर टूट पड़ा। किसी को यह बात न मालूम थी कि अकबर पास है। दो बरस में अपनी बीरता के कारण अकबर ने अपने तीनों सूबेदारों को दबालिया और इक्कीस बरस की अवस्था में दिल्ली सम्राज्य का बेखटके सम्राट हो गया।
७—इसके पीछे राजपूतों से युद्ध आरम्भ हुआ। इस समय भारत में कम से कम सौ राजपूत राजा थे। अकबर यह चाहता था कि उनको अपना मित्र बनाकर उनकी सहायता से उत्तरीय भारत के पठान बादशाहों को आधीन करे। इस कारण एक भारी सेना लेकर राजपूताने में घुस गया और सब से बली राजाओं से लड़ना आरम्भ किया। उन्हों ने देखा कि अकबर धीर बीर और शक्तिमान बादशाह है। उसकी शक्ति से वह डरे और उसकी बीरता से प्रसन्न हुए क्योंकि वह आप भी बीर होते हैं और बीरों का मान करते हैं। अकबर की जीत हुई। उसने उनके साथ मेहरबानी का बर्ताव किया। उनके देश उन्हीं को दे दिये; केवल इतना बचन ले लिया कि उसको अपना सम्राट मानते रहेंगे।
८—परन्तु राना सांगा का बेटा उदयसिंह जो मेवाड़ का राजा था अकबर को डोला देकर सन्धि करने पर राज़ी न हुआ। अकबर ने उसकी राजधानी चित्तौड़ पर चढ़ाई की। उदय सिंह अरवली पहाड़ में चला गया और एक बीर और जवान क्षत्रिय को जिसका नाम जयमल था चित्तौड़ की रक्षा के लिये छोड़ गया। चित्तौड़ गढ़ सारे राजपूताने की नाक थी और