में भी कम न था। कई बार सेना साथ लेकर युद्ध पर, या किसी प्रान्त का सूबेदार करके भेजा गया।
उसी की सम्मति और बुद्धि का परिणाम था कि अकबर ने लगान के नियम बनाये। सारा देश नापा गया और उपज के बिचार से सारी भूमि आठ भांति पर बांटी गई। घटिया पर थोड़ा लगान लगाया गया। इससे पहले बटाई के नियमानुसार लगान लिया जाता था। अर्थात उपज का कुछ भाग सरकार ले लेती थी, कुछ किसान के पास रह जाता था। टोडरमल ने यह रीत निकाली कि अनाज की जगह किसान रुपया दिया करें। तहसीलदारों और लगान लेनेवालों का वेतन नियत हो गया। इससे यह हुआ कि प्रजा केवल लगान देती थी। तहसीली अफ़सरों और कर्मचारियों की भेंट पूजा से छूट गई थी। हर दसवें बरस नया बन्दोबस्त होता था। कुछ और कर जो प्रजा को अखरते थे छोड़ दिये जाते थे।
१०—सारा बशीभूत देश १५ सूबों में बँटा था। हिन्दुस्थान के बारह और दखिन के तीन। उनके नाम यह हैं,—काबुल, लाहोर, मुलतान, इलाहाबाद, अवध, बिहार, बंगाला, अजमेर, गुजरात, बरार, ख़ानदेश, अहमदनगर। अहमदनगर सम्पर्ण रूप से शाहजहां के समय में जीता गया। हर प्रान्त में एक सेनापति होता था जो पीछे सूबेदार कहा जाता था। उसके आधीन एक दीवान होता था जिसके हाथ माल का काम रहता था।