सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[१६९]


एक फौज़दार, एक कोतवाल, एक मीरेअदल अर्थात न्यायाधीश और एक काज़ी भी होता था।

११—अकबर के राज में प्रजा का क्या हाल था? प्रजा ऐसी सुखी और निश्चिन्त रहती थी कि पहिले कभी न थी। पठान बादशाहों के राज्य की अपेक्षा अब कर बहुत कम लगता था। जो महसूल मुसलमानों को देने पड़ते थे वही हिन्दुओं को भी। पहिले जज़िया मुसलमानों के सिवाय और सब से लिया जाता था। अकबर ने जज़िया लेना बंद कर दिया। तीर्थयात्रा करनेवालों से जो महसूल लिया जाता था वह भी छोड़ दिया गया।

१२—हर मनुष्य को अधिकार था कि जिस धर्म पर चाहे चले और जिस भांति उसकी इच्छा हो रहे। कोई किसी को दुख देनेवाला न था। किसी को किसी का भय न था। हां हिन्दुओं के यहां जो सती की रसम थी उसको अकबर ने जहां तक हो सका रोका।

१३—अकबर और दूसरे मुग़ल सम्राटों के समय में प्रजा और देशके प्रबन्ध का कोई ठीक क्रम न था। सम्राट को अधिकार था जो चाहे सो करे। जो सम्राट अकबर की नाईं अच्छा होता तो राज का प्रबन्ध अच्छा होता और जो अच्छा न होता तो देश की दशा शोचनीय हो जाती। अकबर सारा राजकाज अपने हाथों में रखता था; जो चाहता सो करता था; उसकी आज्ञा की अपील न थी। अङ्गरेज़ी राज में चाहै हिन्दू हो चाहै अङ्गरेज़ सब के लिये न्याय का राज है। हर मनुष्य व्यवहार से परिचित है और उसपर चलता है। चाहै वह इङ्गलिस्तान का राजाही क्यों न हो उसे क़ानून के अनुसार उतनाही चलना पड़ता है जितना किसी दीन मंगते को।

१४—मृत्यु के समय अकबर की आयु ६३ बरस की थी।