४—शाहजहां को सिंहासन पर बैठते थोड़ेही दिन बीते थे जब दखिन का सूबेदार खानजहां लोधी बिगड़ गया। अहमदनगर के सुलतान ने इसकी सहायता की। शाहजहां ने अपने सबसे बलवान सेनापति महाबत खां को दक्षिण भेजकर आप भी दल बादल समेत वहीं पहुंचा। दस बरस लगातार लड़ाई होती रही। अन्त को खानजहां मारा गया और अहमदनगर १६३७ ई॰ में मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।
५—शाहजहां का ब्याह मुमताज़ महल नाम की एक ईरानी महिला के साथ हुआ था। यह नूरजहां की भतीजी थी। मुमताज़ महल अपने पति से बड़ा प्रेम रखती थी। चौदह बरस के सुहाग के पीछे जब उसकी मृत्यु का समय आया तो अपने पति से बोली कि तुम और ब्याह न करना और मेरी समाधि ऐसी बनवाना कि जिससे संसार में मेरा नाम रहे। शाहजहां रो रहा था पर उसने यह दोनों बातें स्वीकार कीं और अपने बचन पर अटल रहा। उसने दूसरा ब्याह न किया और मुमताज़ महल की क़ब्र पर ताज महल बनवाया जो संसार की समस्त समाधियों से बहुमूल्य और सुन्दर है। यह आगरे में यमुना जी के किनारे बना है। और देखने में ऐसा जान पड़ता है मानों कल ही बन कर तैयार हुआ है। इसके बनवाने में तीस बरस लगे थे और लगभग तीस लाख रुपये का ख़र्च बैठा था।
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