पहुंचने में, जो सिन्धु की सब से पूर्व की सहायक नदी थी, लगभग ५०० बरस लगे होंगे।
४—जिस नदी को अब हम घाघरा कहते हैं उसका नाम उस समय में दृषहती था और अब जिसका नाम सरसुती है वह सरस्वती कहलाती थी। इन दोनों नदियों के बीच का देश बड़ा उपजाऊ था। इसकी लम्बाई ६० मील और चौड़ाई २० मील थी। आर्य लोग इस टुकड़े को परम पवित्र मानते थे और इसे ब्रह्मावर्त (देवताओं का देश) कहा करते थे। आर्य कहते हैं कि इस देश के आचार व्यवहार सब उज्ज्वल और उत्तम थे।
५—आर्यों ने ५०० बरस में पंजाब पर अपना अधिकार जमा लिया। यह समय वेदों का समय कहा जा सकता है। वेद चार हैं। सब से बड़ा और सब से पुराना ऋग् वेद है। और तीन पीछे के बने हैं। इनका व्यौरा आगे लिखा जायगा। ऋग् वेद स्तुतियों का संग्रह है। यह ग्रन्थ संसार को बहुत पुरानी पुस्तकों में से है। इसमें अग्नि, इन्द्र, और अनेक आर्य-देवताओं की स्तुति के १०२८ मन्त्र हैं। जब कोई बूढ़ा आर्य नित्य ईश्वर की स्तुति करता था तो वह सदा एकही वाक्य एकही ढंग से कहता था। उसकी सन्तान को सुनते सुनते वह वाक्य कंठाग्र हो जाते थे और बूढ़ों को देखते देखते लड़के भी वैसे ही मन्त्र पढ़ना सीख लेते थे। यही क्रम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक और एक शताब्दी से दूसरी शताब्दी तक जारी रहा और वेद का ज्ञान, सुन सुन कर और रट रट कर एक के पीछे दूसरे को होता गया।
६—आर्य ऋषियों ने हिन्दुस्थान आने से पहिले जो मन्त्र रचे थे उनमें से बहुतों का पता भी नहीं चलता। जो बचे हैं वह सब ऋग्वेद में मिलते हैं। यह अनुमान किया जाता है कि ऋग्वेद में वह मन्त्र जो सब से पीछे जोड़े गए ईसा से १५०० बरस पहिले बने