नीची जाति समझी जाने लगीं। यह लोग चाण्डाल कहलाते थे। इनको बस्तियों के अन्दर रहने की आज्ञा नहीं थी, इस कारण गांव के बाहर झोपड़ियां डालकर रहते थे।
८—इस भांति बहुत समय बीत जाने पर वह जाति बनी जिसको हिन्दू कहते हैं। इसको इस ढंग में आये हुए कम से कम तीन हज़ार बरस हो गये। हिन्दुओं के बहुत से परिवार थे। पृथक पृथक परिवारों के पृथक पृथक राजा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और चाण्डाल होते थे। बड़े बड़े नगर बस गये, मन्दिर बन गये, नये नये देवताओं की पूजा होने लगी। इन पुराने नगरों में एक काशी था। जो लोग एक उद्यम करते थे उनकी एक जाति बन गई। होते होते सैकड़ों जातियां हो गई जो अब तक विद्यमान हैं। एक जाति दूसरी जाति का उद्यम नहीं कर सकती। एक जाति के लोग न दूसरी जातिवालों के साथ खाना खा सकते हैं न शादीब्याह करते हैं। जातिभेद का बिचार भारतही के रहनेवालों में पाया जाता है और कहीं नहीं है।
९—हिन्दू धर्म्म भी धीरे धीरे रूप बदलता जाता था। आर्यों के प्राचीन देवता अग्नि और इन्द्र को लोग भूल चुके थे, ऐसा कोई बिरला था जो इनको पूजता हो। आर्यों और पुराने भारतवासियों के धर्मों के मेल से जो नया धर्म्म बना वही अब हिन्दुओं का धर्म्म था। इस धर्म्म के बड़े देवता ब्रह्मा, विष्णु और शिव माने जाने लगे। इनके सिवाय और भी देवता थे। इसी प्रकार आर्यों की वैदिक भाषा और प्राचीन भारतवासियों की भाषा के मेल से पण्डितों की लिखने की संस्कृत और साधारण मनुष्यों के बोल चाल की वह भाषा बनी जिसको प्राकृत कहते हैं और जिस से आजकल की हिन्दी, बङ्गाली और प्रचलित भाषायें निकली हैं।