सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[३७]


हर एक स्थान में क्षत्रियों का राज था पर कहीं कहीं शूद्र भी राज करते थे। कितने ही स्थान पर सैकड़ों बरस तक एक ही परिवार के राजा क्रम से राज करते रहे। इनमें आपुस में भी लड़ाई होती रहती थी। जो अधिक शक्तिमान होता था वह शक्तिहीन को दबा लेता था। हर एक राजा का दर्बार था। हर दर्बार के अमीर, सिपाही, कवि और पुरोहित अलग अलग थे। इनमें से बहुत सी रियासतों के नाम भी किसी को याद नहीं है। जिन जिन का हमको ज्ञान है उनका नीचे बर्णन किया जायगा।

३—इस समय सब से बड़ी शक्तिमान रियासत दक्षिण बिहार में मगध की थी। इसके उत्तर में गंगा जी के पार विदेह को रियासत थी। मगध पर कई शताब्दियों तक बहुत से राजवंश क्रम से राज करते रहे। कहा जाता है कि धीरे धीरे गंगा जी की तरेटी को रियासतें मगधराज्य के आधीन हो गईं।

४—आजकल जिसको बङ्गाला कहते हैं उस समय उसका पूर्वीय भाग बङ्ग कहलाता था और पश्चिमीय अङ्ग के नाम से प्रसिद्ध था। उड़ीसा एक तीसरी रियासत में मिला हुआ था जिसे कलिङ्ग कहते थे। मालवे का सुन्दर पहाड़ी प्रान्त जिसमें कि चम्बल नदी बहती है अवन्ति कहलाता था। अवन्ति के दक्खिन में सौराष्ट्र या सोरठ का देश था जिसे अब गुजरात बोलते हैं। दखिन में गोदावरी के तीर अंध्र का राज्य स्थापित था।

५—इस समय उत्तरीय भारत का धर्म, वहां के शास्त्र और रस्म रिवाज दक्खिन और मध्य भारत में भी फैल गये थे। ब्राह्मण देश देश में फिरते थे; जहां जाते थे वहीं उनका धर्म, उनका शास्त्र और उनकी बोली भी उनके साथ जाती थी। दखिन की द्रविड़ जातियां भी ब्राह्मणों के बहुत से देवताओं को पूजने लगीं और उनकी भाषा में भी संस्कृत के बहुत से शब्द मिल गये। उत्तरीय