पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/४८

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होता था फिर भी इतना अवकाश मिलता था कि वह कविता करें शास्त्र बनायें अथवा विद्या और कला सीखें।

२—इस पुस्तक में इस बात का बर्णन पहिले हो चुका है कि रामायण और महाभारत काव्य इसी समय में लिखे गये और इन दोनों में बहुत से ऐसे किस्से कहानियां हैं जो वाल्मीकि और व्यास जी से बहुत पहिले राजाओं महाराजाओं के दर्बार में भाट और कवि गाया और सुनाया करते थे। इनमें बहुत सी प्राचीन आर्यराजाओं की कीर्त्तियां बर्णित हैं और उनकी बीरताओं के साथ ही साथ बहुत से देवी देवताओं की अख्यायिकायें भी हैं।

३—ब्राह्मणों ने संस्कृत बड़े ध्यान से पढ़ी थी और उसके व्याकरण को बहुत ऊंचे पद पर पहुंचा दिया था। व्याकरण पर उन्हों ने बड़ी बड़ी पुस्तकें लिख डालीं। उस समय का सब से प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि हुआ है। संस्कृत व्याकरण का ग्रन्थ जो इसने लिखा है वह अपने ढंग का अद्वितीय है। ऐसी और कोई पुस्तक सारे संसार में कदाचित न निकलेगी।

४—उस समय के हिन्दुओं ने जब रात को आकाश का अवलोकन किया और चन्द्रमा की चाल पर ध्यान दिया तो ज्योतिषशास्त्र की नींव डाल दी और उन २७ नक्षत्रों के नाम रक्खे जिनमें चन्द्रमा क्रम से प्रवेश करता है। उन्हों ने उन १२ राशियों को भी पहिचाना जिनमें पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा रहता है और उनके नाम रक्खे ।

५—उन्हों ने गिनती की रीति निकाली और अङ्कगणित के सूत्र बनाये। दहाई पर गिन्ती की रीति निकालना इन्हीं आर्यों की बुद्धि का चमत्कार है। पश्चिमीय जातियों ने भी यह गुर इन्हीं से सीखा है। यज्ञ की वेदियों को नाप कर नियमों के अनुसार बनाया करते थे, इस कारण रेखागणित और क्षेत्रमिति की रीतियां