लोगों ने इनके मत को धारण किया। साधारण मनुष्यों पर इनके धर्म का बड़ा अच्छा फल पड़ा, कारण यह कि इनका कथन था कि मेरे माननेवाले कुल स्त्री, पुरुष जो सच बोलें शुद्ध रहें और पाप से बचते रहें वह बराबर हैं और मोक्षपद को पहुंच सकते हैं।
२—बुद्ध की शिक्षा का सारांश यह है कि मनुष्य को चाहे लोक चाहे परलोक में उसके कर्मों का फल मिलता है पाप करने से दुख दर्द मिलता है और अच्छे कामों से सुख। बुद्ध जी का कथन है कि लाख बलिदान, यज्ञ और हवन करो कि देवता प्रसन्न हों पर इससे अपने किये हुए पाप का नाश नहीं कर सकते। करोड़ जप करवाओ और मन्त्र पढ़वाओ पर इससे कभी तुम्हारी राह नहीं सुधर सकती। जो बोयेगा सो काटेगा, जैसा करेगा वैसा भरेगा। वह यह भी कहते थे कि मरने के पीछे मनुष्य की आत्मा कर्मों के अनुसार और और योनियों में जाती है और बारम्बार जन्म लेती और मरती है। आत्मा को मोक्ष उस समय मिलता है जब मनुष्य पाप के फन्दे से निकल जाय, दुख दर्द और काम क्रोध मद लोभ से रहित हो जाय, न दुख को दुख जाने न सुख को सुख। मित्र और बैरी दोनों को बराबर समझे। ऐसी दशा को बुद्ध जी निर्वाण कहते हैं। इस दशा को पहुंच कर आत्मा आवागमन से छूट जाती है, ऊंची नीची योनियों में मारी मारी फिरने से बची रहती है, भवसागर को पार करके शान्ति के कुंज में निवास करती है। अब आत्मा अचल और अटल हो जाती है और इसको परम आनन्द मिल जाता है।
३—बुद्ध जी के चेले जो संसार को छोड़ कर जप तप करने की अभिलाषा करते थे भिक्षु कहलाते थे और स्त्रियां जो घर बार छोड़ कर तपस्विनी हो जाती थी भिक्षुणी कहलाती थीं। इनके रहने के लिये बस्तियों से दूर बहुधा पहाड़ों के खोह में बिहार बनवा दिये