गईं थीं। यहां से चलकर यह लोग यमुना जी की तरेटी में पहुंचे और उस समय के गुप्त राजा को परास्त किया। इनके सर्दार का नाम तूरमान था। उसने ५०० ई॰ के लगभग अपने को मालवे का राजा बनाया और महाराजा की पदवी धारण की—उसके पीछे उसका पुत्र मिहिरिकुल गद्दी पर बैठा। यह बड़ा क्रूर था। इसने इतने मनुष्यों का बध किया कि अन्त में मगध के राजा बालादित्य ने मध्य भारत के एक राजा यशोधर्मन की सहायता से एक बड़ी सेना लेकर उसका सामना किया और ५२८ ई॰ में मुलतान के पास कोदरौर के स्थान पर उसे परास्त किया और उसको और उसकी सेना को भारत से निकाल दिया। हूण भारत में २०० बरस के लगभग रहे। बहुत से हूण तो कहीं कहीं बस गये। गुप्त वंश के राजा उनके निकाले जाने के कोई २०० बरस पीछे तक थानेश्वर में राज करते रहे।
(५) हर्ष या शीलादित्य।
बौद्ध समय के अन्तिम काल का बड़ा राजा हर्ष हुआ है। यह ६०६ ई॰ से ६४८ ई॰ तक सतलज और यमुना के बीच के देश पर राज करता था। इसकी राजधानी थानेश्वर थी जिसका पुराना नाम कुरुक्षेत्र है। इसने शीलादित्य की पदवी धारण की और यह उत्तरीय भारत का राजाधिराज कहा जाता था। इसके पीछे हिन्दू राजाओं में कोई ऐसा बलवान नहीं हुआ जो इस देश का महाराजाधिराज कहलाया हो। पञ्जाब से लेकर आसाम तक गङ्गा और सिंधु की तरेटियों की कुल रियासतों को जीतने में इसे ३० बरस लगे थे। इसने दक्खिन को जीतने का भी उद्योग किया पर इसका मनोरथ पूरा न हुआ।
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