उसने सब की सैर की। वह कहता है कि उत्तरीय भारत के लोग जीव-हिंसा नहीं करते थे मदिरा नहीं पीते थे, और चाण्डालों अथवा नीच जातियों के अतिरिक्त कोई लस्सुन या प्याज़ नहीं खाता था। जो लोग शिकार करते थे अथवा मांस बेचते और खाते थे वह चाण्डाल थे। इनके अतिरिक्त कोई ऐसा काम नहीं करता था। राजा बड़ी नरमी के साथ शासन करता था। जहां जिसका जी चाहे जाय आये, कोई रोक टोक न थी। न किसी भांति की कठिनाई थी। जो मनुष्य शास्त्र के बिरुद्ध चलते थे राजा उन्हें दंड देता था। बाग़ियों को भी प्राणदंड नहीं दिया जाता था; केवल उनका दाहिना हाथ कटवा दिया जाता था। सौदा सुलुफ़ के लेने देने में कौड़ियां चलती थीं। जगह जगह पर बिहार बने हुए थे। इनमें हज़ारों भिक्षु रहते थे। बिहारों में भिक्षुओं के लिये राजा बिछौना, चटाई, खाने पीने की सामग्री कपड़ा लत्ता देता था। मनुष्यों और पशुओं के लिये बहुत से चिकित्सालय थे जहां बड़े बड़े विद्वान वैद्य चिकित्सा करते थे। रोगियों को औषध के साथ खाना भी चिकित्सालय से ही बिना मूल्य मिलता था। इससे प्रगट है कि फ़ाह्यान के समय में अथवा ४०० ई॰ के लगभग उत्तरीय भारत में बौद्ध धर्म ही का प्रचार था।
३—हौनच्वांग फ़ाह्यान से २२० बरस पीछे आया और भारतवर्ष में बहुत दिनों तक रहा। उसने भी भारत की दशा ब्यौरे समेत वर्णन की है। इसने भी काबुल की दिशा से भारत में प्रवेश किया और काश्मीर, पंजाब और भारतवर्ष के बड़े बड़े नगर देखता भालता उड़ीसा, कलिङ्ग और दक्षिण भारत से होता हुआ पश्चिमीय समुद्रतट पर जा पहुंचा और वहां से महाराष्ट्र राजपूताना, गुजरात और सिन्ध में गया अर्थात उसने सारे भारत में चक्कर लगा डाला। इस चक्कर में उसको पन्द्रह बरस लगे थे।