४—हौनच्वांग जहां गया वहीं उसने हिन्दू और बौद्ध धर्म को साथ साथ चलता और बढ़ता हुआ पाया। किसी किसी प्रान्त में जैसे उड़ैसा, काश्मीर और दखिन में बुद्धमत बढ़ा हुआ था और किसी में हिन्दू धर्म का अधिक प्रचार था। हौनच्वांग का कथन है कि बहुतेरे देशों में जहां मैं गया राज-कार्य बड़ी सुगमता से होता था और प्रजा सुखी और निश्चिन्त थी। सब लोग चाहे वह बौद्ध हों चाहे हिन्दू जो जी में आता था सो करते थे और जिसको चाहते थे उसकी आराधना करते थे और एक धर्म के लोग दूसरे धर्मावलम्बियों से बैरभाव नहीं रखते थे। विद्वानों की प्रतिष्ठा होती थी
५—यद्यपि बौद्ध समय में ऐसे बड़े कवि नहीं हुए जैसे इससे पहिले के समय में हुए थे या उसके पीछे, फिर भी विद्या और कला के सीखने सिखाने में बड़ा परिश्रम किया जाता था और उस समय के हिन्दुओं ने बहुत सी नई बातें निकालीं थीं। जब यूनानियों ने भारत में प्रवेश किया तो उन्हों ने भारतवर्ष के विद्वानों से बहुत सी बातें सीखीं और हिन्दुओं को भी यूनानियों से बहुत कुछ लाभ हुआ।
६—बौद्धमतवाले जीव रक्षा को अपना बड़ा कर्तव्य मानते थे। आप हिंसा करना तो दूर रहा दूसरों को भी इससे रोकते थे। हम ऊपर लिख चुके हैं कि उन्हों ने मनुष्यों और पशुओं के निमित्त अलग अलग चिकित्सालय स्थापन किये थे। आयुर्वेद की उन्नति में बड़ा परिश्रम किया जाता था। इस विद्या में सब से निपुण चरक था। इसने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ चरकसंहिता में बड़े ब्यौरे के साथ जड़ी बूटियों से हजारों औषधियों के बनाने की रीतियां लिखी हैं। यूनानियों और अरबवालों ने इस विद्या की बहुत सी बातें चरक से सीखी थीं। आयुर्वेद के अतिरिक्त हिन्दू जर्राही में