पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१०२

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बौदक कालकी सभ्यता ७३ उसी गोत्रके पढ़े लोग लड़नेवाले और धर्मकृत्य करानेवाले जय भार्य लोगोंने भारतमें पाझर यहां प्रचलित रीति रयाजों और रहन सहनकी शैलीको देखा तो उनको यह चिन्ता हुई कि कहीं उनकी जातीय पवित्रता और धार्मिक व्यक्तित्वमें अन्तर न आ जाये *। ये लोग अपने आपको दूसरोंसे श्रेष्टतर और उच्चतर मानते थे और समझते थे कि वे परमेश्वरके विशेष प्रिय मनुष्य हैं और उनके पास एक धर्म-पुस्तक है। इसके अनु. सार वे अपनी धार्मिक रीतियोंकी रक्षा करना और अपने उम्म नेतिक और आध्यात्मिक आदर्शों को स्थिर रपना अपना कर्तव्य समझते थे । अतएव बहुत सम्भव है कि भारतमें आ वसनेके थोहे ही दिन पश्चात् उनको इस बातकी आवश्यकताका अनुभव हुआ कि वे अपने समाजका एक ऐसा विभाग नियत करें जो उनकी इस उच्च धार्मिक और सामाजिक श्रेष्ठताकी रक्षा कर सके। आर्य लोगोंकी नीति और उनकी आध्यात्मिकता- की यह विशेषता है कि वे अपनी सैनिक उत्कृष्टतापर उतना भरोसा न करते थे जितना कि अपने आध्यात्मिक वल और अपनी सभ्यतापर। उन्होंने भारतके मूल निवासियोंसे लड़ा- इयां अवश्य लड़ी और उनको पराजित किया, परन्तु उनको नष्ट नहीं किया, उनको अपमानित नही किया, और उनके रोति-रिवाजमें बलात् हस्तक्षेप नहीं किया। उन्होंने शनैः शनैः मसारको भी बड़ी वटी जातियों में, विशेषत यहदियों, चोनियों और परमि, यह विचार पाया जाता है। अपने अपने समय में सभी प्रवल जानियां अपने अपयो परमेश्वरकी विशेष मिय और सत्कट मृन्तान समझती रही है। वर्तमान काल में यरोपई रोग पनेको समाग्यत Bा समझ है। परन्त भगा लोगोंने मेर पसे इस धाराको पात घट किया । माय परेश मोठिा समझते कि सधारमै मासन करने और सभ्यता फैलाने३ लिये उत्पद हुए है। .