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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१०१

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७२ भारतवर्षका इतिहास इस देशके अधिवासी सारेके सारे असभ्य धीर अशिक्षित न थे। द्राविड़ रहन-सहनमें पुरुषों की तुलना में स्त्रियोंको यहुत अधिक स्वतन्त्रता और अधिकार प्राप्त थे। पिताके स्थान माता ही प्रत्येक परिवारकी मुखिया और अग्रणी गिनीजाती थी। विधाहों- की ऐसी रीति न थी जैसी कि आजकल है। वरन् कहा जाता है कि स्त्रियां और पुरुष जय मेलों या पों के अवसरोंपर एकत्र होते थे तो आपसमें सम्भोग करते थे और उससे जो सन्तान होती थी वह अपनी माताकी देखरेखमें पालित और पोषित होती थी। इस प्रकार कई यार एक एक स्त्रीके कई कई पति भी होते थे। सारे घरका काम और गांवका प्रवन्ध स्त्रियों- के सिपुर्द था। पुरुप प्रायः शिकार करते थे, वे जय गाँवोंमें आते थे तो पृथक भागमें सोते थे। परन्तु आर्योको रहन सहन इससे सर्वथा भिल था। उनके यहां विवाहकी रीति प्रचलित थी और अधिक सम्भव है कि कि वैदिक कालमें एक पतिकी एक ही पती होती थी । बहुपत्नीत्वकी प्रथा न थी। परिवार का मुखिया पिता होता था। जब आयों का द्रविड़ लोगोंसे मेल जोल हुआ तो द्रविड़ लोगोंने अपने रहन सहनका ढङ्ग यदलकर आयों का सामाजिक जीवन ग्रहण कर लिया। आरम्भमें जैसा कि प्रकट है, प्रजाके अन्य भागोंकी अपेक्षा युयुत्सु पुरुषोंकी प्रतिष्ठा अधिक थी। अतएव जातिका नेतृत्व क्षत्रियोंके सिपुर्द था। वही लड़नेवाले और यही पुरोहित थे । आर्यो में धर्म- युद्धिका विकास उनके भारतमें आने पहले ही हो चुका था। अतएव प्रत्येक फुल और प्रत्येक गोत्रका यह कर्त्तव्य था कि यह अपने धर्म कृत्य अपने सर्वोत्तम मनुष्योंसे करवाये । प्रत्येक कुल अपनी भिन्न भिन्न शाखायें फैलनेपर गोत्र बन जाता था। साधारणतः एक गांवमें एक गोत्रके लोग रहते थे और 1 .