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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/११३

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८४ भारतवर्षका इतिहास स्नेह तथा भकिमाव, और सीताजीके यातियत्यका .जो दुर्लभ चित्र रामायणमें देखनेको मिलता है वह आर्योंके उच्च :याचार और पवित्र जीवनका आदर्श बताता है। आगे चलकर जब फ़वि भरतजीको जो उस समय अपने नानाके यहां थे, अयोध्या- में वापस लाता है तब वह और ही कवि-कौशल दिखलाता है। भरतका निःस्वार्थ प्रेम और धर्मानुकूल आचरण प्रत्येक पाठकके सामने पवित्रता और शुद्ध प्रेमका आदर्श स्थापित करता है।

. बनमें राम और लक्ष्मणपर अनेक विपत्तियां माती है।

अन्तको उनके दुर्भाग्यकी चरमसीमा आ पहुंचती है। एक दिन आपेटसे वापस आकर वे क्या देखते हैं कि सीताजी कुटीमें नहीं। ढूंढने और खोजनेसे पता लगता है कि लङ्काका गाजा रावण उन्हें बलात् उठा ले गया है। सीताजीके सतीत्व और रावणकी कामान्धताका चित्र खींचने में भी कधिने : अप्रतिम कौशल दिखलाया है। • इसी पोजमैं दक्षिणकी विजयका वर्णन है। रामचन्द्र और लक्ष्मण दक्षिणी जातियों की सेना लेकरं समुदके पार लङ्कापर घाया करते हैं, और लङ्काको जीतकर वहांका राज्य रावणके भाई विमीपणको प्रदान कर देते हैं। पनयासकी अवधिको समाप्तिपर कवि महाराजा राम- चन्द्रजीको लक्ष्मणती, सीताजी तथा अन्य साथियों सहित यड़ी घुमधामके साथ अयोध्या वापस लाकर गंजसिंहासनपर धैठाता है। कारण यह कि महाराज दशरथका देहान्त तों रामनन्द्रतीके चन-गमनके समेष ही हो ग था, और भतिजी इस काल में केवल रामचन्द्रजीके प्रतिनिधि के रूपमें राज्य करते यहार पतमा प्रयासमाप्तता