आयो महाकाव्य । उत्तराद्ध की कथा यों है कि जब अयोध्या में लौटकर धी- रामचन्द्रजी राज्य करने लगे तो एक दिन उनको यह पता लगा कि प्रजा सीताजीफे रावणके घरमें रहनेका उपालम्म देती है। ये, इस विचारसे कि राजाको लोकमतकी परवाह करनी चाहिये, गर्भवती सीताजीको घरसे निकाल देते हैं। इस स्थल पर कविने राजधर्मका वडा सुन्दरतासे वर्णन करते हुए बत- लाया है कि यद्यपि महाराज रामचन्द्रजीको अपनी भार्याकी पवित्रतापर कुछ भी सन्देह न था तो भी लोकमतके सामने सिर झुकाते हुए, उन्होंने ऐसी प्यारी स्त्रीको, ऐसे संकटके समयमै एकाकी घरसे निर्वासित कर दिया। सोताजो रोती धोती बनको चली गई। यहा वाल्मोकि मुनिने उन्हें अपने याश्रममें शरण दी। वहीं महारानीके दो यमज पुत्र हुए। उनका पालन- पोषण और शिक्षण घाल्मीकिजीने किया । इनके शिक्षण कालमें ही वाल्मीकि रामायणको रचना की और उसे इन लडकों को कण्ठस्य करा दिया। जर वे लडके उसे कण्ठस्थ फर चुके तब उनको अपने साथ रामचन्द्र जीके यशमें अयोध्या ले गये। वहा वे रामायण सुनाते फिरते रहे। यह समाचार फैलते फैलते महाराजा रामचन्द्रजीको भी पहुंचा । उन्होंने उन लड़कों को बुला. कर उनसे रामायण सुना। इसे सुनकर सीताजीके वियोगका दुम उनके हृदयमें फिर ताजा हो गए। उन्होंने पारमोकिजीसे कहा कि यदि प्रजा स्वीकृति दे तो मैं सीताको पुन: ग्रहण करने को उद्यत है। वाल्मीकिजीको विश्वास था कि ग्रजापर अब सीताजीको पवित्रता सिद्ध हो चुकी है और वे उसको फरुणो. त्पादक दशा देखकर, रामचन्द्रजीसे उसको प्रहण करनेकी अवश्य प्रार्थना करेगी। इसलिये ऋपिने सीताजीको अयोध्या बुला मेजा । सीताजी यह सुनकर पहुत प्रसन्न हुई और अयोध्या
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