पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१३२

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रामायण और महाभारतके समयको सभ्यता १०३ चौथा-कणादका वैशेषिक शास्त्र है। यह दर्शन मानो भायौंका पदार्थ विज्ञान है । इसमें पदार्यों का स्वरूप और उनकी रचनाको सिद्ध करनेकी चेष्टा की गई है । इसपर गोतम मुनिकी यनाई हुई टीका प्रामाणिक मानी जाती है। पांचवां-जैमिनीका पूर्व मीमांसा है। इसमें कर्म-काण्डका वर्णन है, और अनुष्ठानों आदिको व्याख्या है। आर्यों ने कर्म- काण्डको भी विज्ञानका रूप दे दिया है और उसे शास्त्रीय सूत्रोंके तौरपर वर्णन किया है। इस दर्शनपर सबसे प्रामाणिक भाष्य व्यास मुनिक है। छठा-व्यासका उत्तर-मीमांसा है। इसको घेदान्त-सूत्र भी कहते हैं। इसमें परमेश्वरका वर्णन है। उसके गुण भी बताये गये हैं। उसीको सारे जगत्का मूल सिद्ध किया गया है। वेदान्त-सूत्रोंपर सबसे बढ़िया भाष्य वात्स्यायन मुनि या चौद्धा- यन मुनिका है। वेद, ब्राह्मण और उपनिषद् प्राचीन भार्योके धर्म-सूत्र । धर्मका चित्र खींचते हैं। रामायण और महामारत उनकी लड़ाइयों और विजयोंका वर्णन करते है। दर्शन-सूत्र आदि उनके पाण्डित्यको प्रकट करते हैं। परन्तु धर्म -सूत्र उनके धार्मिक, सामाजिक, और गृह्य अनुष्ठानोंका और रहन-सहनका चित्र खींचते हैं। ये धर्म -सून तीन प्रकारके हैं:- प्रथम श्रौत सून, अर्थात् ये नियम जिनका सम्बन्ध धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञ-कर्मों से है। द्वितीय-धर्म-सून, अर्थात् दाय और शासनसम्बन्धी धर्म-शास्त्र या - निवम ।