पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१३५

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भारतवर्षका इतिहास ..' पारङ्गत हो जाता था। पचीस वर्षकी आयुमें वह विवाह करके गृहस्थाश्रममें प्रवेश करता था। सन्तान उत्पन्न करता था, धन कमाता था । सम्पत्ति बनाता था। धर्मके काम करता था। पचास वर्षकी आयुमें अपना धन और जायदाद अपने पुत्रों और सम्बन्धियोंमें बाँटकर वानप्रस्थ हो जाता था। वह वनमें जाकर तपस्या करता था। पचहत्तर वर्षको आयुमें सन्यास आश्रममें चला जाता था। इन सूत्रों के पढ़नेसे मालूम होता है कि प्राचीन आर्य सदा- चारपर घड़ा चल देते थे। वाशिष्ठ सूत्रों में एक जगह लिखा है कि “भाचारहीन मनुष्य वेद शास्त्रके पाठसे शुद्ध नहीं होता। ऐसे मनुष्यको वेद कल्याणकारी नहीं होते।" गोतमपि लिखते हैं कि निम्नलिखित कामोंसे मनुष्य अपने वर्णसे पतित हो जाता है :- “हत्या, सुरापान, गुरु-भायांके साथ व्यभिचार, चोरी, वेद-निन्दा, ईश्वरको न मानना, चार यार पाप करना, अपरा: घियोंको शरण देना, निर्दोष मित्रका साथ छोड़ देना, दूसरोंको पापकर्मके लिये प्रेरणा करना, मिथ्या दोषारोपण और अन्य ऐसे ही दुष्कर्म ।" इन शास्त्रोंमें समुद्र के पार जाने या विदेश-यात्राका निषेध नहीं है। गृह्य-सूत्रोंमें आर्योको सोलह संस्कार (ख) गृह्य सूत्र । करनेकी आज्ञा है। पहला-गर्भाधान, अर्यात् गर्भ रहनेके समयका संस्कार । दूसरा-पुंसवन संस्कार। यह गर्भसे दो तीन मास पीछे . किया जाता है।