पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

था कि जयतक निर्वाण प्राप्त नहीं होता मनुष्य मावागमनमें १२२ भारतवर्षका इतिहास साहकारों, संन्यासियों-सारांश यह कि सब प्रकार, सब स्थिति सौर सव सम्प्रदायोंके लोगों को अपने धर्ममें सम्मिलित किया ।समस्त मगध देश और उसके आसपासका प्रान्त उनका मनुयायी हो गया। उनके पिताने भी उनके धर्म की दीक्षा ली। उनका पुत्र भी उनका चेला बना। उनकी माता और धर्मपत्नी भी उनके सम्पदायमें मिल गई। अस्सी वर्पतककी आयुतफ. इसी प्रकार अपने धर्म का प्रचार करनेके पश्चात् इस महान् मात्माने अपनी मानयलीला समाप्त की। कतिपय स्मरणीय तिथियां स्मरण रखने के योग्य है:- महात्मा बुद्धके सम्बन्धमें आगे लिखी तिथियां। जन्म ईसाके ५७७ वर्ष पूर्व। विवाह ५३८ गृह-स्याग ५२८ निर्वाण ५२२ मृत्यु ४७७ बुद्धकी शिक्षा। महात्मा बुद्धने निर्वाण सिद्धान्तकी शिक्षा दी। निरन्तर परिश्रम, त्याग, और पवित्र जीवन द्वारा पुनर्जन्म और सांसारिक विपय-भोगको इच्छाको नष्ट कर डालनेका नाम निर्वाण है। महात्मा बुद्धको शिक्षाके अनुसार, निर्वाणसे जीवात्मा चार चारके जन्म-मरणके घंधनसे मुक्त हो जाता है। निर्याणके पश्चात् मात्माकी पमा गति होगी, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका महात्मा बुद्धने कुछ उचर नहीं दिया । उसने स्पष्ट शब्दोंमें कहा है कि मैं नहीं जानता, के पीछे यात्माकी पमा गति होगी। महात्मा बुद्धका विश्वास . . 12 निर्वाण-