पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१५५

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बौद्ध और जैन धम्माका आरम्म १२५ था और दूसरी भोर संसार-त्यागी होनेसे रक्षा करता था। यह । शिक्षा साधारण जनताके लिये थो, परन्तु जीवनका पूर्ण लाभ भिक्षु बननेसे ही प्राप्त हो सकता था। भिक्षुओंके दलको 'संघ' कहते थे। बुद्ध धर्म में भिक्षुओंके संघको वही अधिकार प्राप्त थे जो रोमन कैथोलिक धर्ममें पोपको और सियोंके धर्ममें संगतको प्राप्त हैं। महात्मा बुद्ध धर्ममें स्त्रियां भी भिक्षुणी बन सकती थीं, परन्तु उनकी पदवी बहुत नीची मानो गई है। बुद्ध देवने ईश्वर और आत्माके विषयमें कोई विशेष शिक्षा नहीं दी। उन्होंने न तो परमात्माके अस्तित्वले इन्कार किया और न उसका स्वीकार । उनकी सम्मतिमें इस प्रकारके विवाद व्यर्य है। मनुष्य के जीवनपर उनका कुछ प्रभाव नहीं पड़ता। बुद्ध अपने जीवनमें पवित्रताके देवता थे भीर पुण्य फम्मॉपर जोर देते थे। परन्तु सेदका विषय है कि उनके पीछे उनके अनुयायियोंने उनके धर्मको उन्हीं व्यर्थ वातोले भर दिया जो उसके पहले प्रचलित थीं। वे उनके पीछे फिर प्रचलित हो गई। महात्मा बुद्ध भार्यों के पहले सुधारक थे जिन्होंने संसारमें अपना धार्मिक सिका ऐसा बैठाया कि आज प्रमाणित रूपले मनुष्य-समाजके इतिहासमें उनको फोटिका दूसरा मनुष्य नहीं माना जाता। ईसाई लोग ईसा मसीहको और मुसलमान मुइ- म्मद साहयको संसारका सबसे बड़ा ईश्वरीय दूत मानते हैं परन्तु शेष सारा संसार भगवान बुद्धको जगत्का सरसे पड़ा मनुष्य समझता है। बाद-धमकी साके जन्मके १७७ वर्ष पूर्व युद्ध देव- का देदान्त हुआ, और इसी वर्ष उनकी शिक्षा और उनके आदेशों को शुद्ध कर एकसित सभाएं। पर योग रोक दूसरे लोग ५४२ ६५ रनमान करने ।