पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१५४

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i भारतवर्षका इतिहास १२५ उनके लिये अविवाहित रहना आवश्यक न था। उनमें से अनेक गृहस्य होते थे। सर्वसाधारणके लिये बुद्धने उस समयके प्रचलित देवी, देयतागोंके पूजनका निषेध नहीं किया । उन्होंने मिक्षुओं के लिये विशेष मर्यादा वनाई परन्तु साधारण लोगोंके लिये केवल साधारण शिक्षा ही दी। उन्होंने उनको उस समयमें प्रचलित मर्यादाको सर्वथा छुड़ा देनेका यत नहीं किया, वरन् यह यही कहते रहे कि जो मार्ग में यतलाता हूं और जो प्रकाश में लाया हूं वह कोई नया नहीं है। 'महात्मा बुद्ध अपने अनुयायिोंको मन वचन और कर्मकी पवित्रताको शिक्षा देते थे। उनके धर्म में वाणी और कर्मकी सचाईपर बहुत बल दिया जाता था। हिंसा और बड़ोंके -प्रति श्रद्धा भी उनकी शिक्षाका प्रधान गङ्ग थी। चोरी न करना, किसीकोन मारना, व्यमिचारन करना, झूठन बोलना, परनिन्दा न करना, लोभ न करना, घृणा न करना, और अविद्यासे बचना, ये उनकी शिक्षाके मुख्य मुख्य सिद्धान्त थे। संसारमें कौनसा धर्म है जो यही शिक्षा नहीं देता, अतएव वुद्ध-धर्मका विशेष उद्देश्य यह था कि ये सचाइयां जो कर्मकाण्डके भारके नीचे दब गई थीं और जिनको सिद्धान्तोंके तत्स्यशानने मन्द कर दिया था। पुनः जनताके जीवनोंमें स्थान पावे, लोग केवल विश्वाससे ही धर्मात्मा न हो वरन् उनका जीवन धर्ममय हो। उन्होंने लोगोंको आठ प्रकारका सचा मार्ग बताया-अर्यात् सत्य विश्वास, सत्य विचार, सत्य वाक्य, सत्य कर्म, सत्य आजीविका (शुद्ध अन्न ), सत्य पुरु: पार्थ, सत्य स्मृति और सत्य ध्यान । उनको समझमें यह मार्ग मध्यवर्ती मार्ग था। यह एक मोर इन्द्रियोंकी दासतासे बचाता