पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१५७

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बौद्ध और जैन धम्मौका आरम्भ इंसाके जन्मके दस वर्ष पश्चात् काश्मीर नरेश कनिष्कके राज- त्व-कालमें तीसरी सभा की थी। इसमें पांच सौ भिक्षु सम्मि. लित हुए थे। बौद्ध-धर्मका प्रचार कहते है कि बुद्ध-धर्मको वृद्धि- । का एक बड़ा कारण यह था कि यह धर्म ऊंची और नीची जातियों में कुछ भेद न समझता था। यौद्ध धर्म में सब मनुष्य समान थे। यदि कोई भेद था तो योग्यता या सत्कर्मका था। देखिये, इस धर्मको छत्र छायाके नीचे उपाली नामक एक नाईको और सुनीत नामके एक भंगी. को आचार्यकी पदवी मिली। यद्यपि वुद्ध भगवानके जीवन-काल में ही कतिपय राजपरि- वारोंने उनके धर्मको ग्रहण कर लिया था, परन्तु बौद्ध धर्मकी वास्तविक उन्नति उस समय हुई जय मगध देशके अधिपतिने इस धर्मकी दीक्षा ली। और वहभाप उस धर्मके प्रचारमें प्रवृत हुआ। इस नरेशका नाम अशोक था। यह मौर्य वंशले मूलपुरुष चन्द्रगुप्तका पोता था। राजा अशोकने अपने पुत्र महेन्द्र को बौद्ध धर्म के प्रचारके लिये सिंहल अर्थात् लङ्का दीपमें भेजा । महेन्द्रने जाते ही लङ्का नरेशको अपने धर्मकी दीक्षा दी। इस प्रकार बौद्ध धर्म लङ्का भी फैल गया। लङ्कासे यह धर्म मगध देशके एक ब्राह्मणके द्वारा सन् ४५०ई० में अलामें फैला। इस ब्राह्मणका उपनाम बुद्ध घोप था। ब्रह्मासे सन् ६३८ ई० में यह धार्म स्याममें गया। इसी समयके लगभग बौद्ध धर्म जावा और सुमात्रा द्वीपोंमें पहुंचा। अशोकने बुद्ध धर्म के प्रचारके लिये उपदेशक, और प्रचारक भिन्न भिन्न देशों, अर्थात, काश्मीर, गंधार, मैसूरके निकट 'महेश, राजपूताना, पश्चिमी पाय, महाराष्ट्र, घलाव और अन्य यूनानी राज्योंको भेजे।