पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१५९

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1 बौद्ध और जैन धम्माका आरम्भ १२६ जो बौद्ध धर्म इस समय लङ्का, ब्रह्मा, चोन जापान यादि देशोमें प्रचलित है वह वर्तमान हिन्दू-धर्मसे भिन्न नहीं है । घुद्ध- को परमेश्वर मानकर स्थान स्थानपर उनके मन्दिर बनाये गये हैं। उनके शरीरफे भिन्न भिन्न अंगोंपर यहे पढ़े स्तूप खदे किये गये है। युद्धकी असंख्य मूर्तियाँ मन्दिरों में और लोगोंके घरों में पाई जाती हैं। इनमेंसे कुछ मूर्तियां बहुत बडी है, और मनुष्य. पूरे डोलकी हैं। अधिकांश महात्मा बुद्धकी समाधि अवस्थाकी हैं। ये मूर्तियाँ एशियाकी कलाका सर्वोत्तम नमूना है। प्रायः यूरोपियन लोग इन्हें परीद कर ले जाते हैं। पत्थर, लकडी, पीतल तांबा, सोना और चांदी, सब ही को मूर्तियां हैं। बुद्धफे अति- रिक्त बुद्धके चेलों और बुद्धके पहलेके वुद्धोंकी बहुत सी मूर्तियों- का पूजन होता है। बुद्धको व्यक्तित्वके चारों ओर एक मतोव जटिल और सर्वाङ्गपूर्ण देवमाला उत्पन्न हो गई है। यह अपने प्रकार और विस्तारमें हिन्दू-पुराणोंसे कम नहीं। धर्मात्मा पौद्धोंका जीवन भी पूजा पाठ, मन्त्र-यन्त्र भोर घण्टे घडियालका जीवन है। भारतमें मूर्तियां और मंदिर सबसे पहले धौद्ध लोगोंने वनाये और प्रतिमा-पूजनका बारम्भ भी उन्हींसे हुआ। परन्तु यह पात विचारणीय है कि जहां पौरा- णिक हिन्दू एक शोक-समाज हैं जिनके जीवन में मामोद-प्रमोद- को बहुत तुच्छ समझा जाता है, वहां ब्रह्मा आदिके बौद्ध यहुत हंसमुख है और सदा प्रसन्न रहते हैं। जैन-धर्म । लोगोंका अनुमान है कि युद्ध-धर्म भारम्भके यारम्भ। पास पास ही जैन धर्मका प्रकाश हुआ। यद्यपि जैन यह मानते हैं कि जैन धर्म के मूले प्रवर्तक धीपारसनाथ ये जो भगवान बुद्धसे लगभग ढाई सौ वर्ष पहले हुए । जैन धर्मके बड़े