मौर्यवंश-सम्राट् चन्द्रगुप्त यद्यपि नदियोंके हेर-फेरसे अव इन नदियोंका संगम दानापुरकी छावनीके निकट पटनासे १२ मील ऊपर होता है। वास्तविक नगर मील लम्बाईमें और ॥ मील चौड़ाई में था। उसके । गिर्द लकड़ीकी एक अतीव सुटूंढ़ दीवार थी। इसमें ६४ द्वार थे। उनपर ५७० वुर्ज बने हुए थे। दीवारके गिर्द एक चौड़ी योर गहरी खाई थी। यह सोन नदी के जलसे भरी जाती थी। राज प्रासाद भी अधिकांश लकड़ीका बना था। वह अपनी सजावट और सज-धजमें यूनान और एशिया कोचकके सर्वोत्तम राजभवनोंसे टकर लेता था। उसके सभी खम्भोंपर सोनेका गिलट किया हुआ था और उसमें सोने-चांदीके बेल-बूटे और चित्र बने हुए थे। सभी भवन एक विस्तृत उद्यान में पड़े थे, जिसमें नाना प्रकारके सरोवर थे और नहरें चलती थी। सोनेके कुछ चहबच्चे और वर्तन छः छः फुट चौड़े थे । तायेगे पात्रों- पर रतोंका जड़ाऊ काम था। सारांश यह कि सब वस्तुयें सोने वांदीसे जगमगा रही थीं। राजाकी सवारी सोनेकी पालकीमें निकला करती थी। पालकीमें सोनेके गुच्छे लटकते थे। राजकीय परिच्छद पारीक मलमलका होता था। उसमें सोने और चांदीका बहुमूल्य काम किया होता था । इसी प्रकार मगस्थनीज़ राजकीयाथियों और घोड़ोंका भी वर्णन करता है। यह कहता है कि गजा - प्रायः जन्तुओं की लड़ाई देता करता था। गाड़ियोंकी दौड एक प्रसिद्ध खेल था। इसमें घोडे और वेल दोनों जोते जाते थे। घोड़ा मध्यमें और पैल उसके दोनों भोर । इन गाड़ियोंकी गाड़ीनान युवतील. कियां होती थीं। जब राजा शिधारका' जाते थे तो उनकी शरीर-रक्षिका स्त्रियां होती थी। ये सियां भिन्न भिन्न देशोंसे सरीदकर लाई जाती थीं। विसेंट स्मियको सम्मतिमें मानीन । $
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