१४४ भारतपर्षका इतिहास: यूनानी अधिकृत प्रान्तोंको पुन: जीतनेके लिये सिन्धुके पार उतरा । चन्द्रगुप्तने मोर्चा लिया और सेलूकसकी ऐसी हार हुई कि उसफो सन्धि करनी पड़ी। इस सन्धिके द्वारा उसने एक तो भारतमें भूतपूर्व यूनानके अधिकृत प्रान्तों परसे अपना अधिकार उठा लिया, दूसरी ओर सिन्धुका निकटवर्ती बहुत सा प्रदेश, और काबुल, हरात और फन्धारका समस्त देश चन्द्रगुप्तके सिपुर्द कर दिया। उसने अपनी पुत्रीका विवाह भी चन्द्रगुप्तके साथ फर दिया । चन्द्र गुप्तने फेवल ५०० हाथी बदले में दिये। सेलूकस और चन्द्रगुप्त के प्रदेशोंको हिन्दुकुशकी गिरिमाला एक दूसरेसे अलग करती थी। यह सन्धि सन् ३०३ ई० पूर में हुई और चन्द्रगुतका देहान्त सन् २६८ ई० पू० में हुआ। अर्थात् २४ वर्षसे भी कम कालमें चन्द्रगुप्तने एक अप्रसिद्ध स्थितिसे उन्नति करते करते अपने आपको भारतका पहला ऐतिहासिक सम्राट घनाया । उसके राज्यमें लगभग सारा अफगानिस्तान और बलूचिस्तान मिला हुआ था। मगस्थनीजका साक्ष्य । सन् ३०३ ई०पू० को सन्धिके पश्चात् सेलूकसने अपना एक दूत, मगस्थनीज़, चन्द्रगुप्तकी राजसभामें नियुक्त किया था। यह मनुष्य विद्याव्यसनी था। उसने उस समयके वृत्तान्तोंको ऐसी स्पष्ट रीतिसे लिखा है कि उसका भ्रमण वृत्तान्त तत्कालीन भारतकी सभ्यताका सर्वोत्तम साक्ष्य गिना जाता है। प्रायः इतिहास लेखक मगस्थनीज़के कपनोंको विश्वास्य और सच्चा मानते हैं। पाटलिपुत्र । मगध राज्यको राजधानी पाटलिपुत्र ईसाके पूर्व पांचवीं शताब्दी में पनाई गई । इस स्थानपर सोन नदी गडाने मिलती थी । पाटलिपुत्रके स्थानपर अब पटना नगर बसा है,
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