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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१८०

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1 भारतवर्पका इतिहास परिच्छदोंपर सुनहला और पहला काम कराते हैं । निहायत वारीकसे वारीफ मलमलपर फूलदार कामकी यनी हुई पोशाकें पहनते हैं। उनके ऊपर छतरियां लगाते हैं, क्योंकि भारतीयोंको सौन्दर्यका बहुत ध्यान है।" यूनानो इतिहास लेखक यह भी लिखते हैं कि उस समय हिन्दू पर्वो के अवसरोंपर बहुत धूम-धाम करते थे, समारोह- पूर्वक बढ़े बड़े जुलूस निकालते थे, जिनमें सोने और चांदीके गहनोंसे सजे हुए विशालकाय हाथी सम्मिलित होते थे। चार चार घोड़ों और बहुतसे घेलोंकी जोड़ियोंवाली गाड़ियां और यल्लमयरदार होते थे। जुलूसमें अतीय बहुमूल्य सोने चांदी और जवाहरातके कामके घर्तन और प्याले आदि साथ जाते थे। उत्तमोत्तम मेज, फुरसियां और अन्य सजावट की सामग्री साथ होती थीं। सुनहले तारोंसे कादी हुई नफीस पोशाके, जङ्गली जन्तु, बैल, भैसे, चीते, पालतू सिंह, सुन्दर और सुरीले कण्ठवाले पक्षी भी साथ चलते थे। मगस्थनीज लिखता है कि "उस समय के हिन्दु सात श्रेणियों में विभक्त थे। पहली दार्शनिक, दूसरी मन्त्री या सलाहकार, तीसरी सिपाही, चौथी परिदर्शक (यहां अभिप्राय समाचार पहुंचानेवाले विभागके अधिकारियोंसे है), पांचवीं कृपिकार, छठी शिल्पी, सातवी गड़रिये । दार्शनिकों और मन्त्रियोंकी श्रेणीसे अभिप्राय ब्राह्मणोंसे है। दार्शनिक वे थे जो धार्मिक कृत्य कराते थे और नौकरी न करते थे । मन्त्री चे थे जो राजाकी नौकरी करते थे। फिर दार्शनिकोंको भी दो दो भागोंमें विभक्त किया गया है। एक वे जो ३७ वर्पतक घोर परिश्रमसे विद्योपार्जन करके गृहस्थ धनते थे। दूसरे वे जो विवाह नहीं करते थे और सदा वनोंमें निवास करते हो। ।