मयिवश सम्राट चन्द्रगुप्त मगस्थतीज लिखता है कि उस फालके हिन्दू प्रायः सत्य- चादी और शुद्धाचारी थे, झूठ न बोलते थे और मदिरापान न करते थे उनको एक दूसरेको सचाई और पुण्यशीलतापर यहां- तक भरोसा और विश्वास था कि सभी प्रतिमायें मौखिक . होती थी। लिखनेकी आवश्यकता न थी। मुकद्दमावाज भी न थे। लोग व्यवहारके दुरुस्त और मामले के साफ थे। वे आपसमें एक दूसरेपर पूर्ण विश्वास रखते थे। देशमें चोरी बहुत कम थी। घर-चार और माल-असवाधकी रक्षाकी कुछ आवश्यकता न थी। स्त्रिया उनकी बहुत पतिव्रता थीं। दासताका नाम निशान भी न था। पराक्रम और वीरतामें समस्त एशियाई जातियोंसे बढ़कर थे। स्वतन्त्रताप्रिय थे और उस समयतक ईरानियों । और मकदूनियावालोंके दो हलकेसे आक्रमणोंके सिवा उनपर बाहरसे कोई आक्रमण न हुआ था। और न उन्होंने कभी किसीके विरुद्ध कोई चढ़ाई की थी। वह यह भी लिखता है कि उस समयमें भारतमें नगरोंकी संख्या बहुत अधिक थी, यहांतक कि उनकी गिनती करना कठिन था। मगस्थनीज लिखता है कि जितने समयतक यह चन्द्रगुप्तको सेनामें रहा उस समयमें चार लाप मनुष्योंके समूहमें कभी किसी एक दिनमें १२०) रुपयेसे अधिकके मुल्पकी चोरी नहीं हुई। चन्द्रगुप्तका फौजदारी कानून बहुत कठोर और पाशविक था। छोटे छोटे अपराधोंके लिये हाथ-पैर काट दिये जाते थे। और मृत्युदंड दिया जाता था। कुछ अपराधोंके लिये सिर मूड दिया जाता था जिसको लोग अतीच अपमानजनक समझते थे।
- मकरहन पृष्ठ ६० से ७३ तक।
+ मकरबन्छ पृ १००