कौटिल्यका अर्थशास्त्र 3 के नियमके अनुसार करेगा। राजाका यह धर्म था कि वह सदा प्रज्ञाकी शिकायतोंको सुननेके लिये तैयार रहे। इसके अतिरिक्त प्रिवी कौंसिल या कोंसिल आय स्टेटका यह काम था कि वह राजाको निरङ्कुशतासे रोके । इस प्रित्री कौंसिलमें साधा- रणतया चारह या सोलह सदस्य होते थे, परन्तु कौटिल्यने इनकी संख्या नियत नहीं की। उस कौंसिल के प्रत्येक सदस्यके. यधीन एक एक विमाग होता था। यह कौंसिल आजकलके यूरोपीय देशोंके केबीनट ( मंत्रिमण्डल) के समान थी। वह सय मंगोंमें साम्राज्य शासनको जिम्मेदार थी और सर्च अधीनस्थ प्रान्तोंके शासक नियुक करती थी। मगस्थनीज़ने चन्द्रगुप्तके मंत्रियोंकी सचरित्रता और वुद्धिमत्ताकी बड़ी प्रशंसा की है। राजाके कर्तव्य यौर कौटिल्यने राजाके कर्तव्यों का वर्णन करते हुए चौबीस घंटोंको सोलह समय-विभाग। मागों में बांटा है। इनमेंसे पहले भाग- में राजाका यह काम था कि वह अपने राज्यकी मार्धिक अवस्या और राष्ट्रीय रक्षाके विषयों पर विचार करे। दूसरे भागने राजा अपनी प्रजाके आवेदन सुनता और अभियोगोंका निर्णय करता था। तीसरा भाग स्नान-ध्यान और खान-पानका था। चौथे भागमें यह में लेता और कर्मचारियोंको नियुक्ति करता था। पांचवां भाग कौंसिलसे मन्त्रणा करने और पुलास विमा- गकी रिपोर्ट सुननेके लिये नियत था। छठेमें राजा विधाम और चिन्तन फरता था। सातवें और आठवें में सैनिक विषयों. पर योग देता था। इस प्रकार दिन व्यतीत हो जाता था। रातके पहले भागने वह फिर अपने गुप्तचर विभागके मधि. रको मोदित या विधिवत राजसत्ता ( Limited constitutional Moarchy la Or
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१९१
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