पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रोपे है, प्रत्येक, माघ कोसपर कुर्व खुदवाये हैं, धर्मशालायें भारतवर्षका इतिहास साधन ध्यान है। मैंने बड़े बड़े नियम यना दिये है, परन्तु जब- तक लोग अपने मन और मस्तिष्कको वशमें करके उनके अनु- सार आचरण न करें उन नियमोंसे कुछ लाम नहीं। फिर भी उसने अपने सारे कर्मचारियों, अफसरों, कमिश्नरों और जिलेके. मजिस्ट्रेटोंका यह कर्तव्य ठहराया था कि वे अपने दौरोंमें कभी कभी भिन्न भिन्न स्थानोंपर समायें करके सच्चे धर्म की शिक्षा दें। वर्पमें कुछ दिन इस कामके लिये विशेषरूपसे नियत थे। नीतिशास्ता नीतिशास्ताओंका भी एक दल उसने नियत किया था। उनके लिये विशेषरूपसे बह कर्तव्य या सेंसर। ठहराया गया था कि वे जीवोंकी रक्षाके लिये कानून बनाये और गुरुजनोंके सम्मान और पूजनके लिये जो नियम बनाये गये हैं उनके अनुसार माचरण करानेमें विशेष यत्न करें। उन अफसरोंको आशा थी कि सभी लोगोंपर और सभी सम्प्रदायोंपर, यहांतक कि राजपरिवारपर भी निगरानी रखें। खियोंपर नियां नीतिशास्ता (सेंसर ) नियत की जाती थीं। निर्धन परिवारोंके पालन-पोषणका विशेष प्रबन्ध था। विध वाओं और अनाथोंके पालनके लिये भो राजकीय कोशसे सहा- यता मिलती थी। पथिकोंके विश्राम और अशोफके समयमें पथिकोंकी भाव- श्यकताओंका विशेषध्यान रक्खा जाता सुखका प्रबन्ध । था। उदाहरणार्थ, एक स्थानपर उसने स्वयं लिखा है कि सड़कोंपर मैंने मनुष्यों और पशुओंको शरण देनेके लिये पीपलके पेड़ लगाये है, जगह जगह आमोंके उपवन मोर सरायें वनवाई है और मनुष्य तथा पशुमोंकी आवश्यकता के लिये असंख्य स्थानोंपर अलफा प्रवन्ध किया है।