पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२२४

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उत्तर-पश्चिमी सीमापर वापतर और पार्थियाका राज्य १६५ मित रहा । वास्तविक भारतमें इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसके विपरीत इस यातके असंख्य प्रमाण मौजूद हैं कि चौद्ध धर्मका चिरस्थायी प्रभाव सारे पश्चिमी एशिया तथा मिस्रपर हुआ। ईरान, तूरान, रूम, शाम, अज़म और मिस्र, यहातक कि यूनानतक यह प्रभाव पहुंचा, और जैसा कि पहले लिखा जा चुका है। ईसाई धर्म की रीति नीतिपर भी इसका यथेष्ट असर पड़ा। यूनानी और भारतीय तत्त्वज्ञानके कुछ सिद्धान्त सामान्य हैं और चौद्ध तथा ईसाई रीति-नीति में भी किसी कदर सादृश्य है, इससे कुछ यूरोपीय लेखक अति शीघ्रतासे यह परिणाम निका- लते हैं कि इन सिद्धान्तोंको भारतने यूनानसे सीपा और बौद्ध- धर्मने इस रीति-नीतिको ईसाई-धर्मसे ग्रहण किया। परन्तु सत्य बात तो यह है कि भारतका तत्वज्ञान यूनानमें अधिक प्राचीन है और बौद्ध-धर्म उस समय अपनी उन्नतिके उच्चतम शिपरतक पहुंच चुका था जबकि ईसाई-धर्मने जन्म लिया। । कुछ लोगोंकी यह धारणा है कि ईसाई धर्म प्रचारक सेएट टामस उस समय भारत में आया और राजा गोएडोफनसके शासन-कालमें जो सन् २० ई० से सन् ८४ ई० तय कन्धार, फावुल और तक्षशिलामें राज्य करता था-उसके देशमें उपदेश करता रहा और वहीं वोरगतिको प्रात हुआ। परन्तु यह काथा विश्वास्य नहीं समझी जाती पोंकि अधिकतर विश्वास्य वृत्तांत यह है कि सेण्ट टामस पहले पहल दक्षिणमें साये और वहीपर उन्होंने ईसाई-पर्मका प्रवार किया। यह बात भी रिश्वास्यरूप- से प्रमाणित नहीं समझी जातो कि सेट टामस शहीद हुए थे।