उत्तर-पश्चिमी सीमापर वायतर और पार्थियाका राज्य १७ दूसरा राजा। नदीतक फैला हुआ था और जिसके अन्तर्गत अफगानिस्तान और धुखारा थे। इस जातिने अन्तको पंजायमें और सिन्धु नदी. की उपत्यकामें इण्डो-पार्थियन सत्ताकी समाप्ति कर दी। इस वंशका दूसरा राजा सन् ४५ ई० में राजगद्दीपर बैठा। इसका नाम फेरफेसस द्वितीय था। यह सम्भव है कि उसने पायको जीता हो और वह बनारसतक पहुंच गया हो। उसके राजत्वकालमें चीन साम्राज्यने रोमन साम्राज्यकी सीमातक समस्त प्रदेशफो जीत- फर अपने राज्यमें मिलाया था। तीसरा राजा दूसरे केडफैससने सन् ७८ ई० तक राज्यं । किया। उसके मरनेपर उसका पुत्र कनिष्क कनिष्क गद्दीपर बैठा। तत्कालीन इतिहासमें यह एक नामी शासक हुआ है। कहते हैं सन् १० ई० में कनिष्कने चीन समाटसे पक राजकुमारी मांगी। इसको चीनके सेनापति पांचा- ऊने एक धृष्टताका कर्म समझकर कनिष्कको पड़ी भारी हार , दी और उसे चीन-राज्यको कर देनेपर विवश किया। बौद्ध धर्म प्रचारके लिये बौद्ध धर्मके प्रचारमें कनिष्फके उद्योग अशोककीटारके समझे जाते कनिष्फके उद्योग। है और उसका नाम तिब्बत, चीन और मङ्गोलियामै सर्वसाधारणको जिहापर है । भारतमें कनिष्क का राज्य मथुरातक फैला हुआ था। उत्तरमें काश्मीर भी इसीके अधीन था। इससे सिके अफगानिस्तान, पाय और सीमान्त प्रदेशमें बड़ी प्रचुरतामे मिलते हैं । कनिककी राज. धानी पुरुषपुर थी जिसको भर पेशावर कहते हैं। यहाँ उसने बुद्ध-धर्म ग्रहण करनेके पश्चात् महात्मा बुद्धको स्मृतिमें एक । बड़ी लाट यनाई। इसमें लकड़ीकी ऊपरी इमारत तीन मंजिलामें
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