पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२२७

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. 1 रूपमें हो। महात्मा बुद्धके समयमें ब्रह्मा, विष्णु और शिवको १९८ भारतवर्षका इतिहास चार सौ फुटतक थी। उसके ऊपर लोहेका एक बड़ा शिषर, लगा हुआ था। कनिष्कने ताशकन्द, यारकंन्द और खुतनको जीता। इन विजयोंके द्वारा चीनको कर देनेसे उसे छुटकारा मिला। कनिष्कके राजत्वकालकी बड़ी प्रसिद्धघटना युद्ध धर्म- की दूसरी समा है | इस समाने स्थायीरूपले बौद्धोंके दो सम्प्र- दाय कर दिये । यह समा काश्मीरमें हुई। उन दो सम्प्रदायोंके नाम हीनयान और महायान थे । बुद्ध-धर्मकी दो सम्प्रदायोंमें चांट ! बुद्ध- इ-धर्म वास्तवमें वैदिक धर्मकी सन्तान था। . यद्यपि 'महात्मा बुद्धने ईश्वर के विषयमें कोई शिक्षा नहीं दी और वेदोंका भगववाणी होना स्वीकार नहीं किया, परन्तु अपनी शिक्षाके शेष सब सिद्धान्तोंमें उसने प्राचीन वैदिक अपियोंकी शिक्षाको दी.पुनर्जीवित किया । यही उनकी प्रतिज्ञा थी। इसी प्रतिज्ञाको महाराज अशोकने अपने लेखोंमें दुहराया है। बुद्ध धर्मको शिक्षाका सारांश कर्म, आवागवन और निर्वाणकी शिक्षा थी। महात्मा बुद्ध अनुष्ठानोंके मुकाबले शुभ विचारपर जोर देते थे और इससे मनुष्यका कल्याण मानते थे। युद्धके कालमें वैदिक धर्ममें मूर्तिपूजा नहीं मिली थी। हां, कर्म- काण्ड बहुत बढ़ गया था। यह विश्वास करने के लिये कारण है कि प्रकृतिकी शक्तिके नाना कपोको आर्य लोग देवी देवताके रूपमें मानते थे। कुछ आर्य पुस्तकोंमें यह लिखा है कि स्वयं देवता लोग यज्ञके समय यशासनपर पाकर विराजमान होते में चौर यज्ञोंमें सम्मिलित होते थे। सम्भव है यह कथन अलङ्कार . पूजा जारी हो चुकी थी। यह पूजा अधिकतर मानसिक थी, क्योंकि न मन्दिर थे और न मूर्तियां थीं।