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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२३०

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उत्तर-पश्चिमी सीमापर याखतर और पार्थियाका राज्य २०१ (ङ) सृष्टिकी तीन शक्तियाँ ब्रह्मा, विष्णु और शिव मानते थे। (च) तीन गुण, अर्थात् सत्व, रज और तम कहते थे। (छात्माकी तीन अवस्थाएँ ठहराते थे, अर्थात् सत्, चित और आनन्द । } इसी प्रकार बौद्धोंने उसके मुकाबले में निरत अर्थात् घुद्ध, संघ और धर्म बनाये और धीरे धीरे इम त्रिमूर्तिमें बुद्धको पर- मात्मा अर्थात् ब्रह्माका, संघको विष्णुका और धर्मको शिका स्थान मिल गया। चिरकालतक बौद्ध धर्मके अनुयायो और दार्शनिक इस प्रकारके परिवर्तनका विरोध करते रहे परन्तु सर्वसाधारण बुद्ध. देवकी उच्च नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षापर अपना ध्यान पकान करने के अयोग्य थे । अतएव जिस प्रकार नाहाणोंने पर- मात्माकी पूजाकी जगह सर्वसाधारणके लिये देवी देवताओंका प्रचार किया उसी प्रकार बौद्ध लोगोंने मी असंख्य देवी देवता बना लिये। जर बौद्ध-धर्म भारतसे बाहर फैला तो उन प्रदेशोंके कुछ धार्मिक देवी देवता भी घोद्ध-देनमालामें जोड दिये गये। इसको क्रियात्मक रूप देने के लिये यूनानी और रोमन देवी देव. ताओं की तरह युद्धदेय तथा भिन्न भिन्न बोधिसत्योंकी मूर्तियां यनने लगीं । मूर्तियां और मन्दिर बनाने का विचार पश्चिमसे और मूर्तियों को समाधि अवस्थामें पैठानेका विचार हिन्दू योग- दर्शनसे लिया गया। इस प्रकार बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदाय हो गये, अर्थात् एक हीनयान और दूसरा महायान । मर्तिके गिना पूजन करनेवाला मूल सम्प्रदाय होनयान कहलाने लगा थोर दुसरा सम्प्रदाय जिसने मूर्तियां स्थापित की महायान कहलाया। महाराजा अशोक हीनयानका माधयदाता था। महाराजा कनिष्क महायानका अनुयायी था। महायान-सिद्धान्तका बड़ा