फाहियानके समयमें राजधानी पाटलीपुत्रमें न थी, क्योंकि भारतवर्षका इतिहास २१२ वार सन् १२६ ई० के लगभग आन्ध्रवंशके राजायोंने पराजित किया था, परन्तु बादमें वे फिर स्वतन्त्र हो गये थे। i रुद्रसिंहका वध चन्द्रगुप्त द्वितीयने उनके अन्तिम शासक रुद्रसिहका वध किया। उसके विषयमें लोककथा है कि वह परले दर्जेका दुराचारी था, और जिस' . समय उसका वध, हुआ उस समय वह एक परपुरुषकी स्त्रीके लहँगेमें छिपा हुआ था। यह घटना सन् ३८८ ई० या सन् ३६५ ई० के लगभगकी बताई जाती है। चन्द्रगुप्त द्वितीयने सन् ४१३ ई० तक राज किया। इतिहास-लेखक उसकी योग्यता और शक्तिका साक्ष्य देते हैं। पश्चिमके साथ व्यापार । उज्जैन प्राचीन कालसे ही एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था। प्राचीन कालसे पश्चिम तटके अगणित बन्दरगाहोंके साथ उसका सम्बन्ध था। यहांका सारा सामुद्रिक व्यापार पश्चिमके साथ होता था। इसके अतिरिक्त उज्जैन कलाओं और विद्याओंका भी केन्द्र था। यहांसे घूमनेवाले नक्षत्रों तथा स्थिर तारोंकी परीक्षा होती थी। उज्जैनके चन्द्रगुप्तके राज्यमें सम्मिलित हो जानेसे उसका राज्य बहुत मालामाल हो गया। पहला चीनी पर्यटक फाहियान चन्द्रगुप्त पहला चीनी पर्य- द्वितीयके शासनकालमें भारतमें आया भोर । टक फाहियान। सन् ४०५ ई०से लेकर सन् ४११ ई० तक इस देशके भिन्न भिन्न भागोंमें फिरता रहा। इस पर्यटकको सारी यात्रामें पन्द्रह वर्ष लगे। उस समयके जो वृत्तान्त उसने लिखे हैं। उनसे गुप्त-कालके मारतका बहुत अच्छा चित्र मिलता है। प्तने पाटलीपत्रको छोड़कर अयोध्याको अपनी राजधानी ,
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