फाहियान ने किसी स्लपर धार्मिक अत्याचार की शिकायत नहीं की। गुप्तवंश के राजा प्रायः सबके सब हिन्दू धर्मानुयायी थे। सम्भवतः पौराणिक हिन्दू-धर्म उनके समय में अस्तित्व में आया। परन्तु इतना होने पर भी राज्य बौद्धों और जैनों की पूरी तरह से रक्षा करता था। उनको न केवल अपने धर्म के प्रचार में पूर्ण स्वतन्त्रता थी वरन् सरकारी सहायता भी मिलती थी। भिक्षुओं को मकान, चारपाइयां, बिछोने, भोजन और वस्त्र बहुतायत से दिये जाते थे। इससे जान पड़ता है कि ये हिन्दू राजा पक्षपात और धर्मान्धता से सर्वथा रहित थे।
फाहियान मूर्त्तियों के उन बड़े बड़े जुलूसों का बड़ी प्रशंसा साथ वर्णन करता है जो दूसरे मास के आठवें दिन, जाते थे और जिनके साथ गाने बजानेवाले होते थे। सम्भव: ये मूर्त्तियां बौद्ध-धर्म्म की थीं।
सन् ४१३ ई० में विक्रमादित्यका पुत्र पहला पहला कुमार-गुप्त। सिंहासन पर बैठा। इस राजागुप्त। भी अश्वमेधयज्ञ किया। इससे जान पड़ता है कि उसके राज्य के विस्तार में कोई कमी नहीं हुई। कुमारगुप्त सन् ४५५ ई० में मर गया और उसके पीछे इस राज्य का था पतन आरम्भ हो गया!
जिस समय कुमारगुप्त का पुत्र स्कन्दगुत स्कन्दगुप्त।सन् ४५५ ई० में सिंहासन पर बैठा उस समय राज्य बहुत सी कठिनाइयों में फंसा हुआ था। यद्यपि यह पुष्पमित्र को पराजित कर चुका था परन्तु उत्तर पश्चिमी दर्रों मैदानों से चलकर भारत में लूट मार मचाने लगे। स्कन्दगुप्त ने उनको एक भारी हार दी और अपनी विजय के स्मारक के रूप में