पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२४८

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गुप्तवंश का राज्य विस्तार

एक बड़ा भारी मीनार[१] बनाया। उसके ऊपर विष्णुकी मूर्त्ति स्थापित की और अपनी चढ़ाई का वृत्तान्त अङ्कित कराया।

स्कन्दगुप्त ने पश्चिमी प्रान्तोंका प्रबन्ध जिनमें काठियाबाई भी था अपने एक राजप्रतिनिधि के सिपुर्द किया था।

विंसेंट स्मिथ लिखता है कि उसके समयमें गोरखपुर जिलेके पूर्व पटनेसे ९० मीलके अन्तरपर एक जैनने पक चिनित स्तम्म' खड़ा किया और वुलन्दशहरके जिलेमें एक धर्मात्मा ब्राह्मणने गङ्गा और यमुनाके बीचके प्रदेश में सूर्यका एक मन्दिर बनाया। इससे मनीत होता है कि स्कन्दगुप्तके समयमें राज्यको सीमानोंमें कोई न्यूनता नहीं हुई। सन् ४०५ के लगभग गृहहीन घूमने-वाली हण जातियोंका एक और ताजा दल अपने प्रदेशसे नीचे उतरा और उसने गान्धारपर अधिकार कर लिया। सन् ४०७ ई० के लगभग होंने स्कन्दगुप्तपर आक्रमण किया। इस यार सन्दगुप्त उन्हें परालान कर सका । सन् ४८० ई० में सन्दगुप्तका भाई पुरुगुप्त राजगदीपर बैठा।

'पुरगुप्त।' स्कन्दगुप्त के समय में स्वर्णमुद्रा में जो मिलावट हो गई थी उसको पुरगुप्तने निकाल वाकर शुद्ध बना दिया।

सन् ४८५ ई० में उसका बेटा नरसिंहगुप्त बालादित्य गद्दीपर घंटा। इसने उत्तरभारनमें यौनोंके प्रसिद्ध विश्वविद्यालय नालन्दमें एक ईटका मन्दिर बनवाया । यह तीन सौ फुट ऊंचा था और इसमें सोना, होरे और जवाहरात प्रचुरतासे जड़े गये

नरसिंहगुप्त यालादित्यके पश्चात् उसका पुत्र कुमारगुप

  1. यह स्थान गाजीपुर के