गुप्त राजाओंके कालमें हिन्दू-साहित्य मोर कलाकी उन्नति २१६ न्दोकी मूर्ति अंकित कराई और महाराज कनिष्कके पोते वसु- बने विधिपूर्वक विष्णु-पूजन ग्रहण किया। इसी प्रकार गुप्त जा भी वैष्णव थे। शिव-पूजाके चिह्न अजन्ताके मन्दिरोंमें भी मिलते हैं। इसका र्णन आगे किया जायगा। परन्तु जिस रीतिसे ब्राह्मणोंने वौद्ध- वर्मके सिद्धान्तोंको अपने धर्मका अङ्ग बना लिया उससे बौद्ध- र्मके मलंग अस्तित्वका नष्ट हो जाना अवश्यम्भावी था। संस्कृत साहित्य । अतएव चौद्धधर्म जितना जितना नीचे गिरता गया और उसकी प्रतिपत्ति कम होती गई उतना उतना ही पाली और प्राकृतिक स्थानमें स्कृतका उत्कर्ष होता गया, यहांतक कि गुप्तकालमें स्कृत-भापा ही धर्म और गद्य-पद्यकी भापा हो गई। इसी पामें कानूनकी पुस्तकें लिखी गई। इसी भापा उपाख्यानों और काव्योंको रचना हुई और यही विद्वानोंकी गापा हो गई। गुप्तकालके सिके भी इसी भापामें हैं। कालिदास भारतका कविकुल-गुरु माना जाता है। उसका द मंगरेज कवि शेक्सपीयरसे कम नहीं । यह कालिदास भी उसकालमें हुआ। कालिदासकी रचनायें इस समय मी संस्कनमें रप सुन्दरता, उपविचार और मार्जित भाषाफी द्वहिसे द्वितीय गिनी जाती है। शकुन्तला नाटकको पढ़कर जर्मनीका सिद्ध कवि गेटे मानन्दोन्मादी मिलीन हो गया था। उसने स नाटककी पड़ी प्रशंसा की है। कालिदासको जन्म भूमिके वषयमें बड़ा विवाद चल रहा है। स्मिथ माहता है कि वह ल्याके मन्दासूरका निवासी था। परन्तु अब यदुतसे यट्याली वद्वान् उनका जन्म-खान यहालमें पतलाते हैं। कालिदासकी विनामाक अतिरिक्त मुद्राराक्षस और मृच्छकटिफ भी उसी $
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